दिवाकर देशना | Diwakar Deshana

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अशोक - Ashok

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कन्हैयालाल - Kanhaiyalal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चर्म-सहिष्णुतता | ७- उद्धार नहीं हो सकता । अतंएव घर्म के क्षेत्र मे विषम» भाव मत रखो । जिद मत करो । हमने जो समझा गौर माना है, वहीं सत्य है, इस महकार को त्यागो और अन्तरात्मा जिसे स्वीकार करती हो, जो पर- मार्थत सत्य हो, उसी को स्वीकार करो । न -साग ४ पृष्ठ २८३ ४. धर्म एक है। उसके पथ _अनेक हो सकते हैं और श्रेणियाँ भी अनेक हो सकती हैं । कोई घर्म का थोडा पालन करता है कोई अधिक पालन करता है। इसी प्रकार श्रेणी भेद होने पर भी साघना के प्रकार में अन्तर होने पर धर्म का स्वरूप एक ही रहता है । भाग २ पृष्ठ १८८ ४. हिन्दू मुसलमान सिक्ख जेन भाइयों ' तुस धर्म व जाति के नाम पर भापस मे द्ष मत करो । विभिन्न धर्मों के अनुयायी होने के कारण टेप करने की क्या आव- स्यकता है । दुनिया का कोई भी धर्म है प करना नहीं सिखलाता फिर भी धर्म के नास पर ढष किया जाता है। वस्तुत धर्म की आड लेकर ट्ष करना अपने धर्म को वदनाम करना है। क “नएसाग ११ पृष्ठ €७ हु श




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