समजवादी आंदोलन के दस्तावेज 1934-52 | Samajvadi Andolan Ke Dastavej 1934-52

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 / समाजवादी आंदोलन के दस्तावेज गांधीजी के परामर्द पर कांग्रेस ने सिविल नाफरमानी आन्दोलन स्थगित कर दिया। इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई थी । वियना से विट्ठलभाई पटेल और सुभाषचंड्र बोस ने आअयान जारी कर कहा: “श्री गांधी ने सिविल नाफरमानी स्थनित करने का जो कदम उठाया है, वह असफलता की स्वीकारोबिस है। हमारी स्पष्ट राय है कि एक राजनीतिक नेता के रूप में गांधी असफल हो गये हैं। अत: अब समय आ गया दै कि नये सिद्धांत और नये तरीके से कांग्रेस का ऋऋ्रांतिका दी पुनर्गेंटन किया जाय और इसके लिए नये नेता की जरूरत है।”” उधर सरकार का रुख आक्राभक था । वायसराय ने गांधीजी से मिलने तक से इनकार कर दिया था । गांधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह का नारा दिया और सरकार ने बड़े पेमाने पर लोगों की गिरफ्तारी करनी शुरू कर दी । गांधीजी पहली अगस्त 193 3को फिर गिरफ्तार कर लिये गये । बीमारी के कारण जब वे छोड़ दिए गये तब भी नतिकता के आधार पर उन्होंने आन्दोलन में हिस्सा नहीं लिया। इस समय कांग्रेस के अन्दर ऐसे लोग भी थे जिनकी राय में देश कानून तोड़ने के लिए तैयार नहीं था, इसलिए पुरानी, स्वराज पार्टी को पुनर्जीवित कर आगामी चनाद लड़ना और कॉंसिल प्रवेश करना जरूरी था । अपनी भिन्न राय के बावजूद गांघीजी ने उसका समर्थन किया । वे. असहाय से हो गये थे । स्वराज पार्टी-वादियों के बढ़ते प्रभाव, उपर्युक्त राष्ट्रीय भ्रंतरराष्ट्रीय स्थिति एवं कम्युनिस्टों के स्वतंत्रता आन्दोलन-विरोधी रुख के कारण नासिक जेल में बंद प्रगतिदील नौजवानों से लेकर ट्रेड यूनियनों में काम करने वाले लोग यह महसूस कर रहे थे कि आजादी की लड़ाई को विस्तृत आधार देने, स्वतंत्र भारत की स्पष्ट सामाजिक आधिक रूपरेखा प्रस्तुत करने के लिए मजदूरों, किसानों की एक पार्टी का गठन आवद्दयक है । अन्तत: 17 मई, 1934 को कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना का निर्णय पटना में ले लिया गया | पटना में अ० भा० कां० कमेटी के अधिवेशन होने से एक दिन पहले कां ० सो ० पार्टी की स्थापना की घोषणा करने का एक तात्कालिक कारण स्वराज पार्टीवादियों, जो कौंसिल प्रवेदा पर जोर दे रहे थे, का प्रतिरोध करना था । यहीं कारण था कि अ० भा ० कां० कमेटी में बेकल्पिक प्रस्ताव के रूप में जो प्रस्ताव सोशलिस्टों ने अपने स्थापना-सम्मेलन में पारित किया उसका अधिकतर हिस्सा काउरिसिल प्रंवेदा का विरोध था । हालांकि इसका असर नहीं हुआ । कांग्रस ने काउन्सिल प्रवेद का फैसला किया । इससे स्पष्ट होता है कि कांग्रस पर उस समय * कैसे लोगों का वचंस्व था । (2) कक्रेस सोदालिस्ट पार्टी अपने जन्मकाल से ही कांग्रेस के अन्दर विवाद का बिक बन, रही। शुरू में लोगों को समकाने के लिए गांधीजी को कहना




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