कसाय पाहुदस्म | Kasaya Pahudam

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Kasaya Pahudam  by कैलाशचंद्र शास्त्री - Kailashchandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गा० ९२ ] मूलपयडिपदेसवित्तीए भागाभागं ऊ 8 ९, जददण्णए एयदं । दुविहो णिद्देसो--ओघेण आदेखेण य । ओधेण जदण्णसमय पबद्धमस्विदण अट्रण्ण कम्माण पदेसवंटणविद्ाणस्स उकस्ससमयपवद्ध- वंटणविधाणभंगो । जदण्णसंतमस्सिदृण अहण्दं पि कम्साण पदेसबंटणस्स उकस्स- संतकम्सपदेसवंटणभंगों । एवं जाणिदूण ऐदव्वं जाव अणाहारि तति । वेद्नीय मोहनीय ज्ञानावरण दु्चनावरण अन्तराय ६१४४ ६१४४ ६१४४ १४४ १४४ १२२८८ ३०७९ २५६ श््ढ्‌ रद १८४३२ ९२१६. ६४०० ६०० ६४०० सास गोत्र आयु द्१४४ ६१४४ ६१४४ ९६ ९६ ६ दू र४० ६२४० ६२०८ अतः सबसे कम साग आयुको सिढा । उससे अधिक साग नाम और गोनत्रको मिठा | नाम और गोत्रसे अधिक साग ज्ञानावरण आदिको सिठा । उनसे अधिक साग सोदनीयकों और गा अधिक भाग वेदनीयको सिखा । यहद बटवारा बंधकी अपेक्षासे बतलाया है । पूर्वेमें बन्घकी अपेक्षा जो आाठों कर्मोका बटवारा किया है. उसी प्रकार सत्त्वकी अपेक्षा सी जानना चाहिये । किन्तु जिस प्रकार सात कर्मोका बन्ध निरन्तर होता है उस प्रकार आयु- कमेंका बन्ध निरन्तर नहीं होता । अतः बन्धकी अपेक्षा आठ कर्मोका जो भाग पहले बतलाया है वह सत्त्वकी अपेक्षा नहीं प्राप्त होता । किन्तु आठों कर्मोका जो समुदित द्रव्य है जायुकमंदा द्रव्य उसके असंख्यातवें थागप्रमाण ही प्राप्त होता है; अतः वेदनीयको छोड़कर शेष छह कर्मोमेंसे प्रत्येकका द्रव्य कुछ कम सातवें भाग और वेद्नीयका द्रव्य साधिक सातवें भागप्रमाण प्राप्त होता है । इस प्रकार बन्घकी अपेक्षा सत्तामें स्थित द्रव्यमें इतनी विशेषता है. । इस विशेषताके अनुसार सब द्रव्यका असंख्यातवाँ भाग सबसे पहले अलग करदे । यह आयुकमंका भाग होगा । रीष असंख्यात बहुमागका सात कर्मोमें उसी क्रमसे बटवारा कर ले जिस क्रमसे बन्घकी भपेक्षा किया है। तात्पयं यह है कि सत्त्वकी अपेक्षा बटवारा करते समय आयुके बिना सात कर्मोंमें ही 'बहुमागे समभागों” इत्योदि नियमके अनुसार बटवारा करना चाहिये और आयुकसकों अछंग सब संचित द्रव्यका असंख्यातवाँ भाग दे देना चाहिये । मान छोजिये सब संचित द्रव्यका प्रमाण द५५३५ है और असंख्यातका प्रमाण देर है तो ६५५३६ में देर का भाग देने पर २०४८ प्राप्त होते हैं । इस प्रकार सब द्रव्यका यह जो असंख्यातवाँ भाग प्राप्त हुआ बह आयु- कर्मका हिस्सा है। अब दोष रहा 5३४८८ सो इसका पूर्वोक्त विघानसे शेष सात कर्मों बटवारा कर ढेना चाहिये । 5 ९. जघन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है--ओघ और आदेश । ओघसे जघन्य समयप्रबद्धकी अपेक्षा आठों कर्मोके प्रदे्शीके बैंटवारेका विधान उत्कृष्ट समयप्रबद्धके बंटवारे- के विधानकी तरह है । तथा जघन्यप्रदेशत्वकी अपेक्षा आठों हो कर्मोके प्रदेशोंका बँटवारा उत्कृष्ट प्रदेशसरक्ेंके बेंटवारेके समान होता है। इस प्रकार जानकर अनाहारी पयंन्त ठे जाना चाहिये ।




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