साहित्यिकों से | Saahityikon Se

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Saahityikon Se by विनोबा - Vinoba

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ साहित्यिकों से उसकी अच्छे-साहित्य में गिनती हो सकती हू । साहित्यिकों से मेरा प्रेम रहा हे, और उनकी मुझ पर कृपा भी रही हू । में उनकी कदर करता हूँ । में मानता हूं कि सामाजिक जीवन में उनका स्थान ऊंचा ह, इसलिए मेंने साहित्यिकों को “'देवर्षि” कहा हू । ऋषि तीन प्रकार के हीते हैं : ब्रह्मषि, राजधि और देंवर्षि । जो तत्त्व-चितन में मरन रहते हैं, जीवन की गहरोई में पठते हूं, उन्हें ्रह्मषि' कहा जाता है। 'ब्रह्म्षि' के चितन को “राजर्धि' व्यवहार में लाते हूं, और 'देवषि' उसका गांयन करते हूं । नारद देवर्षि, थे । सहज प्रेरणा . साहित्य आत्महंतु के लिए होता है, परमेंइवर के लिए होता है, और अहेतुक भी होता है। ' कुल मिलाकर साहित्यिकों से बोले बगेर, लिखे बग़ेर रहा नहीं जाता । उन्हें सहज प्रेरणा होती हु; अन्तःस्फूर्ति होती हूं, जसे, गंगा सहज बहती हू, सूरज सहज प्रकाश . देता है । सूरज को उसका भान नहीं होता हू कि में प्रकाश दें रहा | हूुं। उसी तरह देवर्षि स्वाभाविक रूप से बोलेंगे, रोयेंग । हृंतु-पूवंक बोलेंगे 'तो भी गायेंगे । साहित्यिकों का स्थान बहुत ही ऊचा हु। भगवदगीता' का मतलब हू--भगवान्‌ की गायी हुई चीज । इसलिएं साहित्यिकों का जीवन में विशेष स्थान हू। , '.. ' ' अज्ञात देवाषि ं इस 'जमाने में भी ऐसे देवर्षि हुए हें । रवीन्द्रनाथ ठाकुर देवर्षि थे । जो ढडे होते हैं, प्रसिद्ध होते हैं, वें ही अच्छे और उत्तम साहित्यिक होते हैं, एसी बज़ नहीं है । वे तो अच्छे हूं ही, परन्तु उनसे भी बढ़कर वें हो सकते हें; जिन्हें लोग जानते नहीं । 'सूरज' की सात प्रकार को क्विरणें हम जाति हैं, परन्तु जो 'अल्ट्रावायोलेट” और “इंफ्रारेड-जसी




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