बन्दनवार | Bandanvar

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Bandanvar by शम्भूदयाल सक्सेना - Shambhudayal Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सातेश्वरी ] “मूढ़, क्या कहता , है ? देख, सामने ठाकुरजी विराजते हैं ।” “तुम्हारी आँखों की कमजोरी पर मुझे तरस आता है | में तुम्हें यथाशक्ति उघर जाने से रोकूँगा ।” “भागा, भस्म हो जायगा |” पथिक ने आकाश की ओर देखकर आँखों के मुँद लिया ओर कहा--““आझओ,; अब दुम देखागे ।” ( है. ) . मध्याह् के अंगारों में पथिक आगे-आंगे था और पुजारी पीछे । सामने सड़क पर एक बालक हैज़े से पीड़ित पड़ा था । विलासिनी ने अपनी गोद में उसका लथपथ शरीर रख लिया था । पुजारी ने कहा--'““बागे चलो !” एक घर में सात प्राणी थे । दो लड़के, तीन लड़कियाँ, स्त्री और पुरुष । पुरुष मर चुका था । ख्तरी-पुत्र और दे लड़कियाँ मरणासन्न--बाक़ी भूख-प्यास से बेचैन । पुजारी का हृदय पसीज गया, पर वे थे अछूत 1 विलासिनी वहाँ भी आ गई | पुजारी ने पथिक की ओर देखा । वह निर्वि कार था | ं रे




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