मन्वन्तर | Manvantar

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Manvantar by शम्भूदयाल सक्सेना - Shambhudayal Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के बहता, ले जीवन शिल्पी ने किया रम्य निर्माण सुरोचन॥ हुई रूप की इच्छा जागृत , छलक पडा उर से भावाम्ृत , आदर हो गये पटआचोरें , शैल हो गये धन्य, समारत। नव नव रगो में स्वरूप नव, नव आलेस, प्राण नव चित्रित-- सध्या, उपा, अहनिश, उड़ शशि , अबर-सागर, दिशि पल शतशत , सग-म्ग, जीवनजतु, नर किन्नर , रूण, वीरुध, तरु, हिसनग अभिमत राजा, रक, रूपसी तरुणी सहज स्निग्ध सुपमा से पुलकित। हुई रूप की, इन्छा जाग्रत शाश्वत जीवन फो सुरक्षित कर छलक पड़ा उर से भावाग्ृत। * कण-कण रच जीवन का अंकन क किया पूर्ण, सर्वा ग सुशोभन । आज अजल्ता की भीतों से लिपटा थुग युग का मानव मना 7 हास बिलास, अशु सिसफो सब कहते नित्र आख्यान सनातन । अन्वस्तर




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