महाभारत में धर्म | Mahabhart Me Dharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका [5 न धर्म का स्वरुप प्रस्तुत शांघ प्रवध मे निस धारणा व॑ झनुमार महाभारत मे घम बा विवेचन रिया गया है उसका स्पष्टीकरण भी श्रावगयक है ! घमशास्त्रों झौर महाभारत में जिम अय म घम वो. ग्रहण क्या. गया है वह घम सामाय मानवीय घौर नतिव धम ह। यह घम अँगरजी रिलीजन का पर्योय नहीं है । रिलीजन एव भोर अलौकिक और दूसरी ओर सीमित होता है। ईल्‍वर पगम्चर आदि से रिलीजन वा सम्वघ उस अनौपित्र' बना दता है। इत्र के विरोप रुप, विगाप पगम्वर विशाप विधि नादि से बेयवर यह रिलीजन एव सीमित सम्प्रदाय बन जाता है । पद्चिम व॑ ईइ्वरवादी सम्प्रदाय इमा प्रकार अपनी आस्थाआ मे सीमित हुए हैं । उनमे भी. मानवीय धम तसव का सम्पुर है वितु वट उनवी विशप रूढ़ियो में वध गया है। छल वल से वितव मे इन धर्मों का प्रचार क्या गया है कितु इन धर्मों की घार णायें मानवता की स्वत न विभूति नहीं वन सकता । ई वर-सम्वधघी आस्था के रुप मे धामिक सम्प्रताय भारतवंप मे भी पाय जात हैं, यद्यपि ये पश्चिमी सम्प्रदायो की भाँति सडुचित अभमहिप्एु और प्रचारवाली नहीं है । इमक विपरीत ये उदार और सहिप्णु हैं । कितु प्रस्तुत अध्ययन मे घम वा. अभिष्राय इन सम्प्रदाया से नही है । धम शास्त्रों और महाभारत में धम को मुस्य रूप से मानवीय, सामाजिव और नैनिक माना गया है, । महाभारत के अनुसार मनुष्य से श्रेप्टतर कोई नहीं है। (नहि मानुपातु श्र प्रतर हि किचितु ) । मनु ने भी अपने घम यास्र म कहा है कि ममुप्य अत्यत्त मानवीय है. उसका अवमान कभी नहीं करना चाहिए ( पुस्प नावमयतु ) । इन प्रवार घम शाल्न भोर महाभारत का धम सम्बधी दृष्टिकाण अत्य त मानदीय है । घम का इसी परिभाषा का यहाँ जपनाया गया है और इमी के अनुसार महाभारत के घम सम्वथी तत्वा का विवचन किया गरा है । इस धारणा के अनुसार घम मनुष्य वा श्रेष्ठ उदार और मानवीय कत ये बने जा है । यह कतय मानवीय सम्रया जौर परिस्थितियां के विविय रुपा म चरिताय होता है घमगास्त्र वी परम्परा में इन परिस्थितियां वा वर्ों और आश्मां का नाम दिया है तया. इहा के अनुसार घामिक




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