पुराणों की अमर कहानियाँ | Puranon Ki Amar Kahaniyan

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Puranon Ki Amar Kahaniyan by श्री रामप्रताप त्रिपाठी - Shree Rampratap Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजा उशीनर की परीक्षा हितैपी रहें हैं, किन्तु सब प्रकार से उशीनर की समानता करने वाला मुझे कोई दूसरा राजा नहीं दिखाई पड़ता | वह मरणधर्मा अवश्य है किन्तु उसकी साधना और तपस्या हम अमरों से बढ़कर है। उससे ईर्ष्या करना उचित नहीं है देवराज ! में तो मानता हूँ कि विधाता की इस सृष्टि में समस्त सदगुणों के आश्रय के रूप में उशीनर जैसे सबंस्व-त्यागी ओर विवेकवान्‌ राजा का होना परम आवश्यक है। धरती पर उसी के सुशासन का यह परिणाम है कि इधर अनेक वर्षों से हम देवता लोग भी सुख-शान्ति से स्वर्ग का सुख भोग रहे हैं। अन्यथा आये दिन भूमण्डल की विददाश्रं में हमारी भी परेशानियाँ बढ़ जाती थीं ।? अग्निदेव की इन बातों से देवराज पर मानों घड़ों पानी पड़ गया | वह कुछ क्षण तो चुप रहे । फिर लम्बी साँसें खींचते हुए विषाद भरे स्वर में बोले--“अग्नि ! मैं तुमसे ऐसी आशा नहीं करता था | क्योकि स्वभ की सुख-शान्ति की कल्पना में तुम्हारे सक्रिय सहयोग को मुझे নিনান্ন अपेक्षा रहती हे। मैं यह सब्॒ नहीं सुनना चाहता। मैं तो चाहता हूँ कि जैसे भी हो, हमें उशीनर को तपस्था खणश्डित करनी होगी, क्योकि कहीं ऐसा न हो कि वह धरती पर अखण्ड साम्राज्य भोगने के श्ननन्तर स्वगंके साम्राज्य की भी अभिलाषा करने लगे, जिमसे हम सभी अपदस्थ हो जायें |? देवराज की बातों में यथार्थता थी | श्रशग्नि को जब इसका अनुभव हुआ तो वह भी तत्ज्ण चिन्तित स्वर में बोले--'देवशाज ! श्राप दूर- दश हैं। मेरा तो इस ओर ध्यान भो नहीं था | ठीक है, हमें उशीनर के त्याग और तप की कड़ी परीक्षा लेनी चाहिए । श्राप जैसा करगे, मैं बैता करने के लिए सदा तैयार हूँ |? देवराज बोले--'तो अब विलम्ब करने की आवश्यकता नहीं है। हमें तत्काल भूमएडल पर चलकर उशीनर के त्याग और तप की कड़ी परीक्षा लेनी है | में यह देखना चाहता हूँ कि वह कितना बड़ा धामिक और त्यागी है। अच्छा तो यह होगा कि उसके त्याग और तप का गवं चूर-चूर कर दिया जाय ।› अग्नि सहमत हो गये ।




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