सम्मेलन - पत्रिका | Sammelan Patrika

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Sammelan Patrika by श्री रामप्रताप त्रिपाठी - Shree Rampratap Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रतिक वंस्व अच्डीदास कौ सहज साधनता ९४ सम्प्रदाय में इस ऐतिहासिक क्रान्ति का नेतृत्व बंगाल मे चण्डीदास ते किया। चष्डीदास भागवत प्रम के साहिव्यक्ार थे । चण्डीदास की जीवन-कथा साक्षात्‌ प्रेम की कणा है । चष्डीदास का जन्म सम्वत्‌ १४७४ वि० मेँ बंगाल के बीरभूमि जनपद मे छटना ग्राम मे हृ था । उनके जन्म के योखं समय के बाद उनके पिता सपरिवार बोलपुरा के नन्तुरा ग्राम मे जाकर बस गये । चण्डीदास ने वारेन््रगरह्यण वक्ष में जन्म लिया था। उनके पिता की आधिक अवस्था अच्छी नही थी, पर चण्डीदास के पालन-पोषण का उत्तरदायित्व उन्होने बडी योग्यता से निबाहा ) चष्डीदास के परिवार कौ गणना कूरं ब्रौह्यणो मे होती थी । अपनी धार्मिक आचार-निष्ठा के कारण चण्डी- दास के पिता का नंझुरा ग्राम के धनीमानी सज्जनो से अच्छा सम्पर्क हो गया। नघुरा में बाशुली अथवा विशालाक्षी देवी के मन्दिर के वे पुजारी नियुक्तं हौ गये ओर पैतृक उत्तराधिकारके रूप मे पिता के देहावसान के बाद चण्डीदास ने वाशुली देवी कौ पूजा का भार सम्हाला । वाशुली देवी मे चण्डीदास की बड़ी निष्ठा थी । वे देवी की उपासना ओर प्रेमगीत साधना मे ही अपनी महती शक्ति का उपयोग करते थे । उस समय उनकी अवस्था सुकूमार थी, यौवन मे कोमलता আহ मृदुता, सरसता गौर मधुरता तथा सुन्दरता का सरस सम्मिश्रण था । यौवन की रेखाए मुसकरा रही थी, उनका वणं गौर धा, रग सुनहलो कान्ति की स्पर्घां करता था, काली-काली अलकावली सहसा मनोमुग्धकारिणी थी । उनका स्वर बडा मीठा ओौर कोमल था । नक्रुरा की जनता उनको बहुत मानती थी । चण्डीदास का भी लोगो से सहज अनुराग था । चण्डीदास लोगो को बडे प्रेम से देवी का प्रसाद देते थे । उनके अन्तरदेश मे प्रेमकान्य-पुरुष का आधिपत्य था । वें कभी-कभी देवी के प्रति भक्ति पूणे गीत-गाते-गाते दिव्य उन्माद से अभिभूत हो जाया करते धे । उन्होंने प्रेमतपस्या की । बगाल की भावुकता के वे मध्यकालीन प्रतीक थे! चण्डीदास के मक्तिपूणं प्रेमपदो की रचना की मूल भूमि रामी मेँ उनकी अर्पाथव काम- गन्धहीन दिव्य आसक्ति स्वीकार की जाती है। चण्डीदास नन्नुरा से लगभग दो कोस की दूरी पर तेहाई प्राम मे सरिता कं तट पर प्राकृतिक दृश्यो के आनन्द का नित्य उपभोग करने जायां करते थे । प्राकृतिक सौन्दये-दरोन मे उनका मन बहुत लगता था । एक दिन वे उसी स्थल पर जा रहे भे कि उन्होने बाजार मे देखा कि एक मछली बेचनेवाली सुदरी युवती एक व्यक्ति को और लोगो से उतने ही दाम पर अधिकं मछली दे रही है । उन्हे पता चला किं इसका कारण यह्‌ है कि दोनो एक-दूसरे को प्रेम करते हैं, उन्हें ज्ञात हो गया कि ससार के प्राणी का एकमात्र धर्म प्रेम है, वही प्राण है, यदि मानव प्रेमहीन है तो वह जड है । उनका हृदय प्रेम से परिपूर्ण हो उठा | वे प्रेम के सम्बन्ध में विचार करते-करते अपने विहार स्थल पर पहुँच गये। सघ्या का समय था, आकाश में सूर्य देवता की पीली-पीली लालिमा थिरक कर अन्धकार के आगमन की सूचना दे रही थी पर इस अन्धकार मे चण्डीदास को शाश्वत दिव्य प्रेम-ज्योति का दर्शन हुआ । नदी का शीतल कलरब सरस समीर का आलिगन कर रहा था, खग्गावली श्ञान्त थी। दिश्ञाएं निस्पन्ध थी। चण्डीदास ने एक र॑जक-कन्या को कपड़े धोते देखा, वह पूर्ण युवती थी। उसके नयनो में गौवस की मंदिरा आलोडित थी | सुनहरी गौरकान्ति-विलसित कपोलो पर घृघराले केश चण्न्बज




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