ज्ञान वैराग्य प्रकाश | Gyan Vairagya Prakash

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Gyan Vairagya Prakash by खेमराज श्री कृष्णादासने

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about स्वामी परमानन्द जी - Swami Parmanand Ji

Add Infomation AboutSwami Parmanand Ji

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ः का प्रथम किरण | श आग कर, हि जे इन्दके मनमें यह .सैकत्प हुआ कि किसी प्रकारेसे इसके साथ भोग करना, चाहिये । इन्द्र इसी फिकरमे रहने छगा जबं'कि इन्दकों भहत्या पर घात' ठगाये कुछ काठे बीत गया तत्र एक दिन गौतमज़ी पुष्कर तीयेमे स्नान कर... नेक्नों गये पीछेसे अहन्या उनके पूजाके बतनोंको साफ करने कमी | इतनेमें गौतसका रूप घारण करके इन्द्र गौतमके ग्रहमे घुसा, अहस्या उसको पति जानकार .खडी होगई तब इन्द्रने कहा हे प्रिंये ! आज मैं बडा कामातुर हुआ हूँ तुम जल्दी मेरे पास आवो । अहत्याने कहा हे स्वामिन्‌ ! यह तो आपकी, घूजाका समय है मोगका समय नहीं है आप छूजा कारिये मैंने परुजाकी सब. सामग्री तैयार कर्‌दी है।- इन्दने कहा हे प्रिये ! आज मैंने मानसी प्रजा करली... है तुम जल्दीसे हमारे पास लावो हमको काम जाये देता है। इतना कहकर इन्द्रने अहल्याको पक्ड्कर अपनी मनमानी प्रसनता करकी । जब कि इन्द्र अहत्यासे मोग कर चुका इतसेमे गौतमंजी आगये तब इन्द्र विलारका रूप घारण करके मागने ऊगा । सौतमजीने कहा तू कौन है £ जो बिलारके रूपकों चांरण करके भागा जाता है गौतमजीके क्रोधसे 'इन्दको इतना मय हुआ जॉं 'तुरन्तदी बिठारके रूपको त्याग करके अपने इन्दरूपसे कॉंपता हुआ हाथ जोडकर तिंसके सम्सुख खडा होगया । इन्दको देखतेंही' गौतमने शाप दिया ' है दुष्ट ! जिस एक सगके छिये यहांपर पाप करमें करनेके लिये आया था तेरे, झारीरमें एक हजार मैग होजायेंगे।और अहस्याकों भी झाप दिया मांससे रहित याषाणवत्‌ तेरा शरीर होजायगा । हे चित्तइतते ! ख्रीके संगसे ऐसी इनकी फूंजीती हुई ॥| '््डूं भ १ १. ४ अब ्रह्माकी फजीतीको तुम्हारे प्रति सुनाते हैं-पर्मपुराण स्वगखण्ड अ० हू में यहं कथा है, हे चित्तइते ! शांतनु नाम ,ऋरके एक. क़षि था, तिसकी स्रीकाः नाम | असोधा था, एक दिन ब्रह्माजी किसी कायकेः छिये तिस. ऋूषिके घर रायि।आगें वह, ऋषि घरमें न था तिसकी ख्री घरमें थी, उसने 'पीद्य .अर्घादिकों करेके ब्रह्माजीका वडा सत्कार किया और एक आसर्स उनके बैठनेको दिया लव कि त्रह्माजी आसनप्र बैठे तब तिस पतित्रताने अह्माजीसे कहा मदन: ् फिर रस




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now