राजनैतिक भारत | Rajnaitik Bharat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ः राजनैतिक भारत को स्याग कर बैंध झआन्दोलन का पाठ ग्रहण करें । अतएव उन्होंने इस विषय में बड़ा परिश्रम किया और देश के तमाम बड़े-बड़े नेताओं और पढ़े-लिखे लोगों के साथ पत्र-व्यवह्दार करके सब का ध्यान इस ओर आकर्षित किया और फिर इन लोगों की सहायता से झ्रंत में सन्‌ १८८५ ई० में उस संस्था को जन्म दे दिया, जो आज ४४. वर्षों से भारत-राष्ट्रीय कांग्रेस ( 10087 (०0८55 ) के नाम से इस देश का सच्चा प्रतिनिधित्व कर रही है । कांग्रेस के जन्म से क़रीव पचास बष पहले भी राजा राममोदन ने कुछ राजनैतिक प्रश्नों की चर्चा यहाँ आरम्भ की थी आर भारतीय जनता की कुछ को एक संगठित रूप में लेकर ब्रिटिश सरकार के सामने रक्‍खा था, किंतु उस समय इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया | आगे चल कर जब अंग्रेज़ी शिक्षा का प्रचार हुआ और भारतीयों को यहाँ की राज्य प्रणाली की जाँच करने का श्रव्सर मिलने लगा, तब उन्हें राजनेतिक सुधारों की भी आवश्यकता जान पड़ने लगी | क़रीब १८५० ई० में कलकरे में एक प्रांतीय संस्था _ ६ ब्रिटिश इंडियन एसोसियेशन ” के नाम से श्र बम्बई में एक दूसरी संस्था ' बम्बई एसोसियेशन' के नाम से राजनेतिक चर्चा के लिए खोली गयी थी । इसके बाद पूना की सावजनिक सभा भी स्थापित हुई, जो ब्ब तक चालू है । किंठ ये तमाम संस्थाएँ: स्थानीय थीं । सम्पूर्ण देश की थोर से अभी तक एक भी संस्था नहीं खुली थी । इसी समय पार्लियामेंट के कुछ मेम्बरों ने, जिनमें जान ब्राइट, देनरी फ़ासेट और चार्ह्स श्र डला के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं, भारतीय प्रश्नों पर विशेष दिलचस्पी दिखाना शुरू किया । इससे भी यहाँ के शिक्षितों की आँख खुलने लगीं । इधर समाचार-पत्रों के प्रचार से भी देश की राजनेतिक जाति को ख़ब ही मिला । इसके बाद जब देशी पत्रों की स्वतंत्रता का अपहरण करने एवं सिविल सविस के परीक्षाधियों की




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