कसाय पाहुड़ | Kasay Pahudam

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Kasay Pahudam  by फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( र५ ) साव--सोहनीय सामान्य और उत्तर प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुत्कुष्ट, जवन्य और अजघन्य अनुभारा- वालोंका सत्र ओऔदायिक भाव है; क्योंकि मोहनीय कर्सके उदयसें ही इनका वन्ध आदि सम्भव हैं । यद्यपि उपशान्तमोहमें मोहनीयके उदयक बिना भी इनका सर्द देखा जाता हैं पर वहां पर नवीन बन्घ होकर इनकी सत्ता नहीं होती, इसलिए सर्वत्र औदयिकभाव कहनेमें कोड दोप नहीं है । सन्निकष - मोहनीयसामान्यकी 'पेक्षा सम्निकर्ष सम्भव नहीं हैं । उत्तर प्रकृतियांकी अपेक्षा जो मिध्यावका उत्कृष्ट झजुभागवाला जीव है उसके सम्यक्‍्त्व झोर सम्यस्मिथ्यात्वका सत््व होता सी है और नहीं भी होता, क्योंकि अनादि सिध्याहष्टिके ओर जिसने इनकी उद्देलना कर दी हैं उसके इनका स्व नहीं होता, अन्यके होता है । यदि सत्च होता है तो नियमसे इनके उत्कष्ट झनुभागका सच्ववाला होता है. क्योंकि यह सच्ञिकर्ष सिथ्याहषटिके हो सम्भव हैं श्र सिथ्यादष्टिके सम्यक्त्व ओर सम्यम्सिथ्यात्वका मात्र उत्कृष्ट अजुसाग होता है । मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागवाले जीवके सोलह कपाय और नो नोकपायोंका नियमसे सत्व होता है। किन्तु उसके इन प्र कृतियोंका उत्कृष्ट अनुभाग भी होता है और अजुत्कृ्ट अनुभाग सी होता हैं । यदि अनुत्कृशट अनुभाग होता है तो वह छुट्ट दानियोंमेंसे किसी एक हानिकों लिए इुए होता है । कारण स्पष्ट हूं । सोलह कपाय आर नो नोकपायोंमेंसे एक एकको मुख्यकर इसीमकार सब्निकर्ष घटित कर लेना चाहिए । सम्यक्त्वके उत्कृष्ट झनुभागवाले जीवके सम्यग्सिथ्यात्वका उत्कृष्ट झनुभाग नियमसे होता है । सिथ्यात्व, बारइ कषाय झऔर नो नोकघायोंका उत्कृष्ट झनुभाग भी होता है और अजुत्क्ट अनुभाग भी होता है । यदि अचुत्कष्ट अनुभाग होता हे हो वह छुट्ट प्रकारकी हानिकों लिए हुए होता है। इसके झनन्ताजुवन्धीचतुष्कका सश्व होता भी हे और नहीं भी होता है । यदि स्व होता हे तो उत्कृष्ट अनुभाग भी होता है और अनुत्कृष्ट अनुभाग भी होता है । यदि अनुत्कु्ट अनुभाग होता है तो वह छह अकारकी हानिको लिए हुए होता है । सम्यस्मिथ्यात्वकों मुख्यकर सस्यक्त्वकके समान ही सल्िकर्ष जानना चाहिए । मात्र सम्यस्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट धनुमागवाजेके सम्पक्त्वका सच्व होनेका कोई नियम नहीं है। कारण कि सम्यक्त्वकी उद्देलना सम्यस्मिथ्यात्वसे पहले हो जाती है'। पर यदि उद्देलना नहीं हुई है ठो नियमसे सम्यक्त्वका उत्कृष्ट अनुभाग दी पाया जाता है । मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागवालेके सम्यक्त्व झर सम्यम्सिथ्यात्वका सत््व होता भी है और नहीं सी होता । यदि सम्पग्दष्टि जीव मिथ्यात्वको प्रात दोकर आर सूचम निगोद अपर्याप्तमें उत्पश्न दोकर' सम्यक्स्व ओर सम्पग्सिथ्वात्वकी उद्दलनाके पूर्व सिथ्यात्वके जघस्थ झनुभागकों प्राप्त होता है तो उनका स्व होता हैं न्यथा नहीं होता । यदि सत्व होता है तो नियमसे अजघन्स अजुसागका ही सच्च होता है जो झपने' जघस्यसे श्रनन्तणुखा झधिक होता है । इसके झनन्ताघुक्स्वीचतुष्क, वार संज्वज्षन और नये नोकपायोंका नियससे सत््व होता हैं जो झजघन्य झनन्तगुस्ा झ्धिक होता है। कारण कि इनका जपघन्ब अनुभाग सूदस निगोद अपयोघके सम्भव नहीं हैं । 'आाठ कपायोंका सत्व होता है जो जघन्य सो होता हे झर अजघन्य भी होता है । यदि अजघन्य होता है तो नियमसे छु् वृद्धियोंकों लिए हुए होता है । सिथ्यात्व और आठ कफायोंके जघन्य अनुभागका स्वामी एक है, इसलिए यहाँ ऐसा सम्मव है । आठ कचायोमेंसे प्रत्येक कवायको मुख्यकर सब्चिकंका कथन सिध्यात्वके समान ही करना चाहिए । सम्सक्स्वके जघन्य अजुसागवालेके बारह कषाय शोर नो नोकबायोका झपने सच्चके साथ अजघस्य असुभाग होता है लो अपने जफ्न्वफी अपेरा अमस्तयुला अधिक होता है। इसके झन्य अकृतियोकर स्व नहीं होता, क्योकि सम्बक्‍्त्वकी चपसाके अस्तिस समयरसे उसका जवन्य झनुमाग होता है, इसखिद उसके उक्त इकीस मफ़तियोंका दी स्व पाया जाता है! इसी प्रकार सस्पस्सिव्वत््वकों सुक्पतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि इसके ससवगस्थवका मे समय होता है. जो सस्यवस्कका खस्व




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