षोड़शी | shodshi

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shodshi  by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दृश्य ] प्रथम अंक दर श्ण दी कर की करियर टसलसिसह री जाओ । ( पास :अनेर्पर ) पुलिसने मकान घेर. लिया है,--मजिस्टेट साइव काटकके भीतर घुस! आये. हैं, आ ही पहुँचे समझो 1 (पोड़शी चौंक उठती है) जिलेके मजिस्ट्रेट टरपर निकलें हैं, कोस-मर दूर कैम्प ढाठा दे । ठम्हारे पिताने रातद्दीको उनके पास: जाकर सब दाल कहा. है। सिर्फ इतनेद्दीसे इतना न होता; किन्तु सादव खुद भी मेरे छपर बहुत . खफा हैं । उन्होंने पिछले साल दो वार जाल 'फैंसानेकी कोशिश की थी, पर मैं फैंस न सका,--आज एकवारगी हाथों. दाथ पकड़ लियां है । (जरा हूँस देता है ! ) एककीड़ी--(. चेदरा : फेंक पढ़ गया है ) हुजूर, अव्रकी 'बार तो हम लोगोंकी भी खैर नहीं ! जीवानन्द--हो सकता है । ( पोड़शीके प्रति ) बदला: लेंना चाहो तो यह अच्छा मीका है । मुझे जेल भी भिजवा सकती दो । - ः योड़शी--इसमें जेल क्यों होगी १. - .. है ्ट जीवानन्द--कानत है । इसके सिवा के० साइवके..पंजेमें फैसा हूँ.। वाइुड़- चगानकी मेसमें रदते हुए. इसीके चक्करमें पड़कर में एक वार पन्‍्द्रद वीस दिनके छिए, दवाल़ातमें भी रद्द चुका हूं । किसी भी तरह जमानत नहीं छी,--जंमा- नत तव देता भी कौन ! क 'पोड़शी--( उत्सुक कण्ठसे,) आप क्या कभी वादुड़-वगानके मेसमें रदे हैं ? जीवालन्द-नहीं । उस समय एक प्रणय-काण्डका नायक बना था; नालायकं आयान घोषने किसी तरह पिण्ड ही न छोड़ा,--पुलिंसके सुपुर्द कर दिया । खैर, वदद बहुत वढ़ा किस्सा है ! साहव मुझे भूला नहीं है,--खूब:- पहचानंता है । आज भी भाय सकता था, सगर दर्दके मारे खाट पकड़ ली दे, हिलनेकी भी कूवत नहीं । ः पोड़शी--अ( कोमल कण्ठसे ) कया आपका दर्द कम नहीं हो रहा है? .. जीवानन्द--नहीं । इसके सिवाय यह दर्द अच्छा द्ोनेवाठा नहीं है । पोड़शी--( कुछ देर चुप रहकर ) मुझे क्या करना होगा ! जीवामन्द--सिर्फ केदना छोगा, तुम अपनी इच्छासे आई हो आर अपनी इच्छासे यददीं हो । इसके वदले तुम्हें मैं सारी देवोत्तर सम्पत्ति छोड़ दूँगा, हजार रुपये नगद दूँगा और नजरानेके रुपयोंकी तो कोई वात ही नहीं | / एककौड़ी कुछ कददना चाहता है पर पोड़शीके मुँदकी ओर देखकर रुक जाता है]




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