इतिहास - प्रवेश | Itihas-pravesh
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
806
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जयचन्द्र विद्यालंकार - Jaychandra Vidhyalnkar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(च')
छिपाया न जाय प्रप्युत ठीक क्रम योर ठीक अनुपात से डिलाया जाय ।
“प्राप. सच्ति्त चित्र देना चाहते हैं तो कैमरे का फोकस दूरी पर रसिए, ।
पर यदि झाप रग छू कर शक्लें मिटाने की कोशिश करते हैं तो यह ईमानदारी
नहीं दै । जो घटना कैमरे वी मार में श्राती है उसे रतना ही होगा । यदि
हमारे पुरम्मा कमी गलत रास्ते पर चलते रहे तो बताना चाहिए कि उनका
रास्ता गलत था दौर कि चदद क्यों गलत था ।” ( शिमला द्मिभापण ) 1
इन सिद्धान्तों पर इस ग्रन्थ में परागर झाचरण किया गया है ।
दस पद्धति से विद्यार्थियों के दिमाग पर नोक पड़ने के यजाय उनकी
रुचि श्र चिन्तन शक्ति जगेगी इसकी पूरी ्राशा दे। इ० प्र० के प्रकट होने
से पदले नागपुर सभिमापणु को पढ़ कर ही श्री वासुदेवशरण श्रग्रवाल ने कद
दिया था कि “इस वैज्ञानिक श्रौर सत्य से भरे कालप्रिमाग का द्वाभय लिया
जाय तो. छातों में श्रपनी सूक से देसने की क्षमता उत्पन्न होगी ।”
«.... $११ भारतीय इतिहास की चिन्न-सामगय्री--ऐतिहालिक श्रवशेषों
वी पोज से जो सामग्री निकली है श्रौर श्राये दिन निकल रही है, उससे मारतीय
जनता के श्रतीत जीयन पर भरपूर प्रकाश पढ़ता दे । पर जिन्हें भारतीय इतिहास
यो सूगगी घटना-तालिका रूप में पेश करना या, उन्होंने उस सामग्री के बहुत से
पइलुश्रों को भी नजरन्दाज किया । भारतीय दृष्टि से इतिद्यास के मनन में उस
चित्रसामग्री के श्रध्ययन का मी विशिष्ट स्थान है । इ० प्र० से उठ सामग्री का
ठीक स्वरूप द्ीर मूल्य प्रकट होगा । भारतीय इतिदास पर श्रमूल्य प्रकाश
डालो वाले श्रनेक दुलंभ श्रीर मददस्वपूर्ण चिम इसमें पदली यार प्रकाशित
सिपे गये हैं। चित्रों के प्रामाणिक द्वाने पर उतता दी ध्यान दिया गया है जितना
« पथ्यियसतु थे ।
$१९. दीली सौर भाषा--छोटे म्रथ में वितादों वी गुशाइश न थी,
प मूल लेगा के प्रतीक देने थी, इसलिए मरसक वियादों के मैंपरों से वच कर
सेगे थी बोशिश यी गई है । पर घटनाश्रों वी चुनाई जिस स्वाभाविक िकास-
मम से वी गई दे उससे ये स्वयं बोलेंगी, श्रर्यात् उपका पूर्पपरसमन्यय शरीर
कारण-पार्यसम्पघ स्वत स्पष्ट होगा, ऐसी आशा दै। मूत लेखों के शब्द
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