हिन्दू धर्मकोश | Hindu Dharm Kos
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
49.63 MB
कुल पष्ठ :
712
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अक़ूरघाट-अक्षर
प्राप्त हुई । उसका स्मारक नौणेरा में वना हुआ है, जो
हिन्दू एव मुसखमान तीर्थयात्रियो के लिए समान श्रद्धा का
स्थान है ।
अकालियो का मुख्य कार्यालय अमृतसर में “अकाल
वृरगा' है जो सिक्खो के कई पूज्य सिंहासनो में से एक हैं ।
अकाली लोग घामिक कृत्यों का निर्देश वही से ग्रहण करते
है । ये अपने को खालसों का नेता समझते है । रणजीतसिहू
के राज्यकाल में इनका मुख्य कार्यालय आनन्दपुर हो गया
था, किन्तु अच इनका प्रभाव बहुत कम पड गया हूं !
अकाली सघ के सदस्य प्रहाचर्य का पालन करते हैँ ।
उनका कोई नियमित मुखिया या शिष्य नही होता, किन्तु
फिर भी वें अपने गुरु की आजा का पालन करते है । गुरु
की जुठन चेले (शिष्य) प्रसाद रूप में साते है । वे दूसरे
सिकसो की तरह मास एवं भदिरा का सेवन नहीं करते,
किन्तु भाँग का सेवन अधिक मात्रा में करते हूं। दे०
सिक्ख ।
अक्ूरघाट--वृन्दावन से मथुरा जाते समय श्री कृष्ण नें अक्रूर
को यमुनाजरू में दिव्य दर्शन कराया था । इसीलिए
इसका महत्त्व हैं । इसको “ब्रह्मह्द' भी कहते है। यह
मथुरा-वृन्दावन के बीच कंछार में स्थित है । समीप में
गोपीताथजी का मन्दिर है । वशाख शुक्ठ नवमी को यहाँ
मेला होता है ।
अक्षमाला--(१) गक्षो (रुद्राक्ष भादि) की माला, सुमिरनी
या जपमाला । इसको अक्षसूत्र भी कहते हू ।
(२) वसिष्ठ की पत्नी का एंक नाम भी अक्षमाला है ।
मततु ने कहा हैं
“अक्षमाला वसिष्ठेन सयुक्ताथमयोनिजा ।'
[ नीच योनि में उत्पन्न अक्षमाला का वसिष्ठ के साथ
विवाह हो गया 1 ||
अक्षयचतुर्थी--मगल के दिन पड़ने वाली चतुर्थी, जो विशेष
पुण्यदायिनी होती है । इस दिन उपवास करने से गक्षय
पुण्य की प्राप्ति होती है ।
अक्षयफलावातति (अक्षयतुतोया)--वैशाख शुक्ल तुतीया को
विष्णुपूजा अक्षय फल प्रासि के लिए की जाती हैं।
थदि कृत्तिका नक्नत्र इस तिथि को हो तव यह पूजा विशेष
पुण्यप्रदायिनी होती है । दे० निर्णयसिन्धु, पु० ९२-९४ |
विष्णुमन्दिरो में इस पर्व पर विज्षेष समारोह होता
हैं, जिसमें सर्वाँग चन्दन की अर्चना और सत्त का भोग
लगाया जाता है ।
रे
अक्षेयनवसी--कातिक शुवंल नवमी । इस दिन भगवान्
विष्णु ने कृष्माण्ड नामक दैत्य का वघ किया था । दे०
ब्रतराज, ३४ |
अक्षयवट--प्रयाग में गद्भा-यमुना सगम के पास किले के
भीतर अक्षयवट है । यह सनातन विद्ववुक्ष माना जाता
है । असख्य याथी इसकी पूजा करने जाते हैं । काशी
भौर गया में भी अक्षयवट हूँ जिनकी पुजा-परिक्रमा की
जाती है । अक्षयवट को जैन भी पवित्र मानते हू । उनकी
परम्परा के अनुसार इसके नीचे ऋषभदेवजी ने तप
किया था ।
मक्षर--(१) जो सर्वत्र व्याप्त हो । यह शिव तया विष्णु का
पर्याय है
'अव्यय पुरुप साक्षी क्षेत्रो5क्षर एव च ।' (महाभारत)
अज (जन्मरहित) जीव को भी अक्षर कहते है ।
(२) जो क्षीण नही हो
'येनाक्षरं पुरुप वेद सत्यमू
प्रोवाच त तत््वतों ब्रह्मविद्यामु ।'
(वेदान्तसार में उद्घृत उपनिपद्)
[ जिससे सत्य गौर अविनाणी पुरुष का ज्ञान होता है
उस ब्रह्मविद्या को उसने यथार्थ रूप से कहा । ] और भी
कहां ह
.... द्वाबिमौ पुरुपौ लोके क्षरश्वाक्षर एव च ।
क्षर सर्वाणि भुतानि कूटस्थोश्क्षर उच्यते ॥।
(श्रीमदुभगवद्गीता)
[ ससार में क्षर भर अक्षर नाम के दो पुरुप है। सभी
भूतो को क्षर कहते है । कूटस्थ को अक्षर कहते है ।] ब्रह्मा
से लेकर स्थावर तक के शरीर को क्षर कहा गया हैं ।
अविवेकी लोग शरीर को ही पुरुप मानते है । भोक्ता
को चेतन कहते है । उसे ही अक्षर पुरुप कहते है। वह
सनातन और अविकारी है ।
(३) “न क्षरति इति अक्षर ' इस व्युत्पत्ति से विनाश-
रहित, विज्वेषरहित, प्रणव नामक ब्रह्म को भी भक्षर
कहते हूं । कूटस्थ, नित्य भात्मा को भी अक्षर कहते है
क्ष राद्विरद्धधर्मत्वादक्ष र ब्रह्म... भण्यते ।
कार्यकारणरूप तु. नध्वर क्षरमुच्यते ॥।
यत्किश्चिद्स्तु लोकेस्मिन् वाचों गोचरता गतमु ।
प्रमाणस्य च. तत्सर्वमक्षरे प्रतिषिध्यते ॥।
यदप्रवोधातू कार्पण्य वाह्मण्य यत्प्रवोधत ।
तदक्षर प्रवोद्धव्य.. य्रथोक्तेक्वरवर्त्सता ॥।
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