अकबरी दरबार भाग 3 | Akabari Darwar Bhag 3

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : अकबरी दरबार भाग 3  - Akabari Darwar Bhag 3

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma

Add Infomation AboutRamchandra Verma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ ९ ] ता था और भाषणों तथा युक्तियों के चकमक को टकराता था; लेकिन वास्तविकता का पतिंगा न चमकता था । दुःखी होता था और रहद जाता था । उसी अवसर पर मुझ साहब पहुँचे । उन्होंने यौवन के 'छावेश और कीर्ति तथा उन्नति की कामना से बहुतों को तोड़ा । उन्होंने ऐसे ढंग दिखलाए जिन से जान पड़ा कि नए मस्तिष्कों में नए विचार उत्पन्न होने की आशा हो सकती है। लोगों में इस नवयुबक के विचारों की भी चर्चा हो रही थी । जिस स्रोत में मुझा साहब पतले थे, यह भी उसी की मछली था । बड़ा भाई दरबार में पहले ही से उपस्थित था । प्रताप ने उसे चुम्बक पत्थर के आकषण से दरबार को ओर खींचा । यद्यपि उस मैदान में ऐसे लोग भरे हुए थे जो उसके पिता के समय से उसके वंश के रक्त के प्यास थे, फिर भी यह सत्यु से कुश्ती लड़ता और अभाग्य को रेलता ढकेलता दरबार में जा ही पहुँचा । इश्वर जाने फेजी ने किस अवसर पर बादशाह से निवेदन किया था और किस से कहलाया था। तात्पयं यह कि दीपक से दीपक प्रकाशमान हुआ । स्वयं अकबरनामें में लिखा है और अपने श्ारम्भिक विचारों का नए ढंग से नक्शा खींचा है। सन्‌ ९८१ हि० में अकबर के शासन-काल का उन्नीसवाँ वर्ष था, जब कि झअकबरनामे के लेखक अब्बुलफजल ने अकबर के पवित्र दरबार में सिर शुक्ता कर अपने पद और मयादा को उच्चासन पर पहुँचाया । एकान्त के गभभ में से निकलने पर पाँच बष में व्यवहार का ज्ञान आप्त हुआ । शब्द और अर्थ के पिता नेशिक्षा की दृष्टि से देखा ( अथात्‌ ज्ञान ने ही शिक्षा दी ) ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now