कबीरकसौटी | Kabirkasoti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
74
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कर्बारकसोदी । (१५१
पहुरा दिये फरूठ साल पहुराना सूठगये ॥ सोचतेथे कि
अगर सुकुट उतारकर पहरावें - तो दुबारा ख्रान कराना
पड़ेगा ॥ इसी सोचमें गड़गाप हो रहे थे इतनेमें कबीरजीने
डचोटीक़े वाइरसे आवाज देकरकदा ॥ किदेस्वार्माजीघुंडी
खसोछकर पहुरादोतव स्वादीजीने जाना कियशतोपणेत्रह्म
दे जो अंतगंतकी तब जानताहे ॥ डयोढी परदा दूर करके
आसन दिया और अंकमाल किया ॥ स्वपी घुंडीखोछके
तब मारा गठडार । गररबदास इस सजनकोजानतदे कर-
: तार ॥ ड्योडीपरदा दूरकर लावा अंगढ्याय ॥ गरीबदास
गुजरी वहुत बढ़ने बदुनामिछाय ॥ मनकीएजा तुमल्खीं
सुकुट माउपरवड् ॥ गरावदास गातका छख कान
नरन कोन मेज ॥
आये कथा स्वाजीत पंडितकी बहुत हें मगर थोडासा
. प्रहंग डिडाहे ॥ सवाजीत जब अपनी माके उपदेश
दाशीजीमें आये तो उतकेसाथपुस्तक बेलॉपर ठदेहुयेये ।
नीरु: जोठाहाकी ठडकी कुवेपर जठ सर रदीयी ॥
पंडितजीन उससे पूछा कि कबीरका परकहां हें उडकीने
नवाव दिया कवीरका पर शिखर है जहांसठेहली गेठ
पांव न टिद्दे पिपीछिका पंडितलादेवेला। पंडितने जाना
कि यह ठड़की जरूर कबीरको जानती होगी ॥ उसने
एक पानीका छोटा भरकर उस लड़कीके पास दिया
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