अग्निपरीक्षा | Agni Pariksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रान्त श्राज एकान्त-रूप-सा पाकर तुकको ,
उठ, भाई, उठ, भेंट, श्रक में भर ले मुझको
मैं वन मे जाकर हसा; किन्तु घर झाकर रोया »
खोकर रोये सभी; भरत, मैं पाकर रोया !'
झर्नि-परीक्षा के राम श्रौर भरत मिलते हैं--
श्राया श्रवनी पर श्रभ्नन्यान
राघव-नक्ष्मण नीचे. उतरे ,
श्रा. मातृभूमि के झ्रचल में
चेहरे निखरे उल्लास भरे ,
वालकवत् दौड़ भरत भाई
गिर गए राम के चरणो मे ,
खोए-खोए से. हृदय हुए
पिछले सुमघुर सस्मरणो मे ।
श्रविराम राम पादाम्वुज को
नयनाम्बूज से वे सीच रहे,
वौहो मे भरकर झअवरज को
अ्रग्रज ऊपर को खीच रहे ,
झर पर रकखा है वरद हस्त
श्रत्यन्त स्नेह से गले लगा ,
भरतेश विरह सब भूल गए
श्रस्तर में नव श्राह्वाद जगा ।
एक दुसरे के प्रति, दोनो भ्रनिमिष दृष्टि निहार रहे ;
बहा-बहां पानी पलकों से मन का भार उत्तार रहे ।
मुखरित मोद, भावना मुखरित,किन्तु हो रही वाणी मौन ,
श्रनन्दाव्घि निमज्जित मानस, दोनो मे कम वेसी कौन ?
साकेत के राम चरणों मे गिरे भरत को उठाकर बाह भरने का अनुरोध
करते हैं तो भ्ररिनि-परीक्षा के राम--“'वाहो मे भरकर अवरज को श्रग्रज ऊपर को
खींच रहे” यो अपनी वाहो मे उसे भरने को ही प्रयत्नकील है । दोनो ही काव्यो की
भावाभिव्यजना अझपनी-झ्पनी स्थिति मे झ्रम्नतिम हैं ।
साकेत के राम कहते हैं कि तेरा पलडा भारी हैं । वह जमीन पर टिका है
तो भर्नि-परीक्षा के राम, राज्य-ग्रहण के प्रसंग पर कहते हैं--
इस सारी जनता ने तुमको नैसर्गिक शासक माना है ।
हमने भी तेरा पूर्णतया अब सही रूप पहिचाना है ।
श्दे
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