मानव मार्ग दर्शन भाग - 2 | Manav Marg Darshan Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
381
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)होकर विजयनगर जाने का था; जिसके लिये श्रापने मुजफ्फरनगर
से कलकत्ता का टिंकिट खरीद लिया तथा कलकत्ता टेलीफोन
करके गोहाटी के लिये. हवाई जहाज का टिकिट
. भी रिजवें करा लिया था। यह सब होते हुये भी
माघ शुक्ला चतुर्थी के सायंकाल के समय; संसार को भसार
समक करके; विशाल परिवार एवं सम्पत्ति के होते हुये भी
आपके हृदय में श्रकस्मात् वै राग्य समुद्र उमड़ पड़ा फलत: श्रापने
झ्राचायें श्री क्षुल्लक दीक्षा के लिये प्राथना की; उसी समय
श्राचाये श्री ने सहर्ष स्वीकृति प्रदान कर दी; झतः श्रापने माघ
शुक्ला पंचमी को विशाल जन समुदाय के बीच में भ्राचायं
श्री के कर कमलों द्वारा क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की ।
(७) दीक्षा के बाद उत्तर प्रदेश में श्रापने मुजफ्फरनमर,
दामली, कराणा, कांदला, शाहपुर श्रादि दहरों में शभ्राचायं
श्री के साथ साथ विहार किया । रात्रि के समय उक्त नगरों में
जो झ्रापका प्रभावशाली भ्रवचन होता था उससे प्रभावित होकर
हजारों जेन, अ्रजैन बन्धुभ्नों ने लाभ उठाया । कई भाईयों मे
पंच श्रणुब्रत श्रौर भ्रष्ट मूल गुण ग्रहण किये श्रौर सप्तव्यसनों
का त्याग किया ।
कमेंवशात् श्रापको उत्तर प्रदेश की जलवायु माफिक
नहीं होने से शारीरिक व्यथा रहने लगी; जिसका उपचार भी
किया गया लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली; फलत: वहां के
( शा )
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