आराधन समुच्चय | Aradhana Samucchy

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Aradhana Samucchy by सिद्धसागर जी महाराज - Siddhsagar Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ठ ) तथा जिसका यन्न सुं कै समान चारो दिश्षायो मे व्याप्त था । ऐसे महाराजा का महान श्नमत्यि था नानु गोधा । जिमका यज्ञ भी प्रपते स्वामी के समान चारो दिधाधो मे व्याप्त था । जिन्होने कैलाश्च एव सम्मेदरिखर कीती्थेयात्रायेकी थी तथा जिनकी नव साहित्य निर्माण करवाने कीश्रोर विदोष रचि थी । यशोधर चरित एक प्रवन्व है । इस काष्य कौ एक पाण्डुलिपि जयपुर के महावीर भवन के संग्रहालय मे उपलब्ध है) प्राप्त पाण्डलिपि स० १६६१ प्र्थात्‌ श्रपने रचनाकाल के केवल २ वर्ष पश्चात्‌ की ही लिखी हुई है । स० १६६४ (सन्‌ १६०७) ज्येष्ठ कृ० ३ इस नगर के लिए श्रपने इतिहास का स्वणं दिन था । इस दिन यहा जैन मन्दिर का निर्माण होने के पश्चात्‌ एक बडा भारी समारोह भ्रायोजित किया गया जो पच-कल्याणाक प्रतिष्ठा के नाम से विख्यात है । प्रतिष्टाकारक थे महाराजा मानसिह के विश्वस्त भ्रमात्य स्वय नानु गोधा । इसलिये यह समारोह राजकीय स्तर पर प्रायोजित किया गया । इसमे राजस्थानकेही नटी समूचे देण के विभिन्न ग्रामो एव नगरोसे लासो की सख्या मे जैन एव जँनेतर समाज एकत्रित हूना । श्रौर भगवान ष मदेव की मूति सहित मैकडो कौ सख्या मे जिन मूतियो कौ प्रतिष्टा विधि सम्पन्न हुई । सभव है हसं समारोह मे मगन बादजाह अकवर के प्रतिनिधि तथा स्वय महाराजा मानिह भी सम्मिन्तिहूये हो क्योकि प्रतिष्टा सम।रोह एव मन्दिर निर्माण को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे नानु गोघा ने उस समय श्रपनी समस्त विशाल सम्पत्ति का मक्त हस्त से वितररण करके उसका सस्कृति, साहित्य एवं कला के विकास मे सदुपयोग किया था । ध्रपनी कला एवं विज्ञालता के लिये शीघ्र ही नानू गोधा द्वारा निर्मा- पित नगर का यह जैन मन्दिर सारे राजस्थान मे प्रसिद्ध हो गया । लोग सुदूर भ्रान्तो से दशेनाथं श्राने ले श्रौर संकडो वर्षो तक यद्‌ उनवा तीर्थ स्थान बना रहा । मदिर के ऊपर जो तीन शिखर है वे मानों दूर से ही जनसाधारर को घपनी झोर झामत्रित करते हैं तथा साथ ही मे जगत को सम्यक्‌ श्रद्धा, सम्यक्‌ ज्ञान




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