मानव - मार्गदर्शन भाग - 3 | Manav - Margdarshan Bhag-3

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Manav - Margdarshan Bhag-3 by सिद्धसागर जी महाराज - Siddhsagar Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( € ) पूज्य श्री २०५ ललक सिद्ठसागरजी महाराज वन - जीवन-पारिचय है स जातो येन जातेन, थाति वंशः समुन्नतिम्‌ । परिवत्तिनि संसारे, मृतः को वा न जायते ॥१।.. श्रापका जन्म सं० १६८१ श्रावण कृष्णा पंचमी के दिन लाडनूं (राजस्थान) निवासी लब्धप्रविष्ठ श्रीमाच्‌ सेठ सांगीलालजी जेन अग्रवाल के घर हुआ; आ्रापकी माता श्रीमती मौजीदेवी धन्य हैं जिन्होंने ऐसे पुत्र-रत्न को जन्म दिया। आपकी धर्मपत्नी पतित्रतपरायणा श्रीमती सरस्वती देवी थी। आपके तीन पुत्र ( श्री सांवरमल, श्री गिरधारीलाल एवं श्री विजयकुमार ), तीत ही पुत्रियां ( मुलीबाई, पवनबाई और सरोजबाई ) एवं चार पौत्र (पदमकुमार, महावीर, अ्रमृतलाल श्ौर चन्द्रप्रकाश ) हैं। आपका पूरा परिवार घमंनिष्ठ है क्योंकि बच्चों पर माता-पिता का असर हुए बिना नहीं रहता । ु भ्रापकी धर्मपत्नी स्वर्गीय सरस्वतीदेवी की धामिक रुचि श्रनुकरणीय थी; आपका श्रधिकांश समय धामिक कार्यों में ही व्यतीत होता था; झ्रापके हृदय में कोमलता एवं करुणाभाव सदेव विद्यमान रहता था; इस ` धार्मिक रुचि के कारण आप तीर्थ॑स्थानों की यात्रा हेतु एवं साधुवर्ग की सेवार्थ अपने पति के साथ जाया करती थीं; श्रधिक क्‍या लिखें, अंतिम १४ वर्षों में तो आपने ७७ बार श्री सम्मेदरिखयर तीथंराज की वंदना की तथा ६२ बार श्री गिरनार सिद्धक्षत्र की वंदना की; इसी तरह श्रापने प्रायः सभी तीर्थों की भ्रनेक बार वंदना करके श्रपने जीवन को भ्रादर्श बनाया । जीवनभर के उल्लेखनीय उत्तम संस्कारों के बल से ही आपका श्रतुपम समाधिमरण हुआ था। संवत्‌ २०३३ की भाद्रपद कृष्णा त्रयोदशी को रात्रि के २ बजकर ३५ मिनट पर णमोकार मंत्र




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