मानव मार्ग दर्शन भाग - 2 | Manav Marg Darshan Bhag - 2

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Manav Marg Darshan Bhag - 2  by सिद्धसागर जी महाराज - Siddhsagar Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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होकर विजयनगर जाने का था; जिसके लिये श्रापने मुजफ्फरनगर से कलकत्ता का टिंकिट खरीद लिया तथा कलकत्ता टेलीफोन करके गोहाटी के लिये. हवाई जहाज का टिकिट . भी रिजवें करा लिया था। यह सब होते हुये भी माघ शुक्ला चतुर्थी के सायंकाल के समय; संसार को भसार समक करके; विशाल परिवार एवं सम्पत्ति के होते हुये भी आपके हृदय में श्रकस्मात्‌ वै राग्य समुद्र उमड़ पड़ा फलत: श्रापने झ्राचायें श्री क्षुल्लक दीक्षा के लिये प्राथना की; उसी समय श्राचाये श्री ने सहर्ष स्वीकृति प्रदान कर दी; झतः श्रापने माघ शुक्ला पंचमी को विशाल जन समुदाय के बीच में भ्राचायं श्री के कर कमलों द्वारा क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की । (७) दीक्षा के बाद उत्तर प्रदेश में श्रापने मुजफ्फरनमर, दामली, कराणा, कांदला, शाहपुर श्रादि दहरों में शभ्राचायं श्री के साथ साथ विहार किया । रात्रि के समय उक्त नगरों में जो झ्रापका प्रभावशाली भ्रवचन होता था उससे प्रभावित होकर हजारों जेन, अ्रजैन बन्धुभ्नों ने लाभ उठाया । कई भाईयों मे पंच श्रणुब्रत श्रौर भ्रष्ट मूल गुण ग्रहण किये श्रौर सप्तव्यसनों का त्याग किया । कमेंवशात्‌ श्रापको उत्तर प्रदेश की जलवायु माफिक नहीं होने से शारीरिक व्यथा रहने लगी; जिसका उपचार भी किया गया लेकिन उसमें सफलता नहीं मिली; फलत: वहां के ( शा )




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