अप्सरा | Apsaraa
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अप्सर रे
बड़े लोग इन्हें ही कला की दृष्टि से देख रहे थे । कोई छः फ्रीट ऊँची,
तिस पर नाक नदारद ; कोई डेढ़ ही हाथ की छटंकी, पर होंठ आँखों
की उपमभा लिए हुए आकण-विस्वृत ; किसी की साढ़े तीन हाथ की
लंबाई चोड़ाई में बदली हुई--एक-एक कदम पर प्रथ्वी काँप उठती,
किसी की आाँखें भक्खियों-सी छोटी 'और गालों में तबले मढ़े हुए ;
किसी की उम्र का पता नहीं, शायद सन् ५७ के ग्रदर में मिस्टर दृडसन
को गोद खिलाया दो, इस पर जेसी दुलकी चाल सबने दिखाई, जैसे
भुलमुल में पैर पड़ रहे हों । जनता गेट से उनके भीतर चले जाने के
कुछ सेकेंड तक ठृष्णा की विस्ट्त अपार आँखों से कला के उस
ात्राप्य अमृत का पान करती रही ।
कुछ देर के बाद एक प्राइवेट मोटर आई । बिना किसी इंगित के
दी जनता की छुब्ध तरंग शांत हो गई, सब लोगों के झंग रूप की
तढ़ित् से प्रदत निश्चेष्ट रद्द गए । यह सर्वेश्वरी का दाथ पकड़े हुए
केनक मोटर से उत्तर रद्दी थी । सबकी आँखों के संध्याकाश में जैसे
सुंदर इंद्रश्वलुब 'छंकित दो गया । सबने देखा, मूर्तिमती अ्रमात कीं
किरण दै । उस दिन घर से अपने भन के अनुसार सर्वेश्वरी उसे
सजाकर लाई थी । घानी रंग की रेशमी साड़ी पहने हुए, द्वार्थों में
सोने की, रोशनी से चमकती हुई चूड़ियाँ, गले में हीरे का द्वार, कानों
में चंपा, रेशमी फ्रीतें से बैँधे, तरंगित खुले लंबे बाल, स्वस्थ सुंदर
दे, कान तक लिंची, किसो की खोज-सी करती हुई बड़ी-बड़ी 'आ्खें,
काले रंग से कुछ स्याद कर तिरल्ाई हुई भोहें, पैरों में लेडी स्टाकिंग
और सुनइले रंग के जूते । लोग स्टेज की श्रमिनेत्री शर्कृतल्ञा को सिस
कनक के रूप में अ्पलक नेत्रों से देख रहे थे। लोगों के मनोभावों को
सममकर सर्वेशवरी देर कर रही थी । मोटर से सामान उतरवाने,
डाइवर को मोटर लाने का वक्त, बवलाने, नोकर को कुछ भूला हुछा
सामान मकान से ले झाने की आज्ञा देनें में लगी रही । फिर धीरे-
धीरे कनक का दाथ पकड़े हुए, अपने अली के साथ, शरीन-रूम की
तरफ चली गई । लोग जैसे स्वप्न देखकर लागे । फिर चदल-पदल मच
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