भूदान - गंगा सप्तम खण्ड | Bhoodan-Ganga Khand 7

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Bhoodan-Ganga Khand 7 by आचार्य विनोबा भावे - Acharya Vinoba Bhave

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० भूदान गंगा दूसरे का आफ्रमग न दो । प्रेस की साफ यायमस रयमी है, हो मेरे और आपे परिवार में सश्योग होना चादिए । मैं आपेे घर पर पथर महदीं पकिता और आप मेरे पर पत्थर नहीं पके, तो इससे तायत पैदा नहीं होती | यद सगायामिग व्याख्या है । इंसामसीइ मे नाम पर लोग हमें ब्यत्तिगत मालकिन की पपिप्रता यताते हैं। उनकी इससे अधिक दिटपना नहीं दो रावती । उन्दोंने पण था 1 लय दाई नेदर ऐन दाईसेटफ ।' पढ़ोणी पर प्रेम रो, इतना ही नहीं पद; थोद़ा प्रेस करो ये भी सही कही; बर्फ यद कद मि जितगा आपने पर प्रेम बरते दो, ढतना पढ़ोसी पर फरो । याने मैं भीर मेरा पढ़ौती यह मेद मिट. जाय | यह शरु को भी भपने प्रेम मैं दासिर फरने वौ प्रात ऐै | प्रेम का इमछा हम कुश्मन पर भी प्रेम का इमला फरेंगे, तथ्र प्रेम थी शक्ति प्रकट दोगी | आज प्रेम डरपोफ घना है, घर में बैठा है, पानी के साथ, लड़के के साथ प्यार करता है| लेकिन पड़ोसी के साथ प्यार करने से डरता है और दुइमन के साथ प्यार परने से कॉरपता है। जहाँ द्वेप पैर थी दिग्मत करता है, वर्दी प्रेस डर्ता है। वह (प्रेम ) मैदान मे भाता ही नहीं, पर में बेटा रदता है । घुछ लोग पहनी को परदे में रसते दै। इसी सरह थे लोग प्रेम को परदे में रसते हैं । पली परदे से बाइर खुरी दवा में आती है, तो उन्दें डर लगता है। उसी तरद जिर्दें प्रेम को माइर लाने में सय लगता है, वे पड़ोसी के साथ प्रेम से नहीं रहते । घर में सपको समान रूप से जाना पीना मिलना चादिए, यद प्रेम वा कानत घर में पते है, तो यही समाज में लाने में क्यों डरते है प्रेम इतना डरपोक बन गया कि इमें दया आती है । इसलिए दाकगाचार्य नेकहामि प्रेम से नसरत करो । टेप प्रेस वर्जित दया करो, दर से नफरत करो, पैसे प्रेम से मी करो। प्रेम को काम का रूप आया, बह कैदी घना, इसलिए: उसका विपरीत रूप बना । समाज को कल्याण करने बी दाक्ति उसमें नहीं रददी, इसलिए, उसकी भी मपफरत कथे । दटिंसा दाक्ति जोर कर रही है, वोटि यौटि लोग सेना में दाखिल होने लगे! एक दिन




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