धर्म के नाम पर | Dharm Ke Naam Par

Dharm Ke Naam Par by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घर्म के नाम पर १३ इन सभो धमें प्रन्थों में कुछ न था; यह मेरा कहना नहीं है। पुराणों से इतिहास की झप्रतिम सामग्री झाज भी दमें उपलब्ध दो सकती है । तके; मीमांसा, योग और साँख्य में बहुत बुद्धिगम्य बातें हैं, परन्तु यदि कोई बरतु नददीं है तो धर्म । इन सभी ध्मे- प्रन्थ कहदाने वाली पुस्तकों ने यदि किसी विषय में हमें झन्धा ओर गुमरादद बनाया है तो केवल धरम के विषय में । तब धर्मे क्‍या चीज है ? जेसा कि इम कद्द चुके हैं--भन्डी का घर्म पाखाना साफ करना, वेश्या का कसब कमाना, श्र विधवा का मरे पति के नाम पर बेठी रोया करना धरम है। उस धर्म की इस चर्चा नहीं करते । धमे-शास्त्रों में धरम की केसी व्याख्या दे; इस पर थोड़ा प्रकाश डालना चादते हैं । मनुस्पति कहती है कि धीरज; क्षमा, दम; 'झस्तेय, शौच, इन्ट्रिय-निप्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य, श्रक्रोध ये धर्म के दस लक्षण हैं। इन द्शों में सिपाद्दी का घधम हिंसा तो नहीं झाया। इसमें सत्यासत्य की व्याख्या भी नहीं कीगई । अब इस श्लोक में बर्णित लक्षणों को बुद्धि की कसौटी पर कस कर हम देखते हैं । सब से प्रथम सत्य को लीजिये । सत्य धम का लक्षण है । में सत्य बोलने का श्रत लेता हूँ । मेरे पास १० हजार रुपये ज़मीन में छत्यन्त गोपनीय तोर पर गड़े हैं, उनका पता चलना भी सम्भव नहीं । दजार-पांच सौ ऊपर भी मेरे पास हैं। एक दिन चोर ने गला था दबाया । कद्दा--''जो है रखदो, वरना झाभी छुरा कलेजे के पार है ।” ब आप कहदिये क्या मुमे सत्य कह देना चाहिये कि इतना यद्द रद्दा छोर १० दजार बद्दां जमीन में गड़ा है ? मेरी




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