धर्म के नाम पर | Dharm Ke Naam Par
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
157
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घर्म के नाम पर १३
इन सभो धमें प्रन्थों में कुछ न था; यह मेरा कहना नहीं है।
पुराणों से इतिहास की झप्रतिम सामग्री झाज भी दमें उपलब्ध
दो सकती है । तके; मीमांसा, योग और साँख्य में बहुत बुद्धिगम्य
बातें हैं, परन्तु यदि कोई बरतु नददीं है तो धर्म । इन सभी ध्मे-
प्रन्थ कहदाने वाली पुस्तकों ने यदि किसी विषय में हमें झन्धा ओर
गुमरादद बनाया है तो केवल धरम के विषय में ।
तब धर्मे क्या चीज है ? जेसा कि इम कद्द चुके हैं--भन्डी का
घर्म पाखाना साफ करना, वेश्या का कसब कमाना, श्र विधवा
का मरे पति के नाम पर बेठी रोया करना धरम है। उस धर्म की
इस चर्चा नहीं करते । धमे-शास्त्रों में धरम की केसी व्याख्या दे;
इस पर थोड़ा प्रकाश डालना चादते हैं ।
मनुस्पति कहती है कि धीरज; क्षमा, दम; 'झस्तेय, शौच,
इन्ट्रिय-निप्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य, श्रक्रोध ये धर्म के दस लक्षण
हैं। इन द्शों में सिपाद्दी का घधम हिंसा तो नहीं झाया। इसमें
सत्यासत्य की व्याख्या भी नहीं कीगई । अब इस श्लोक में बर्णित
लक्षणों को बुद्धि की कसौटी पर कस कर हम देखते हैं ।
सब से प्रथम सत्य को लीजिये । सत्य धम का लक्षण है । में
सत्य बोलने का श्रत लेता हूँ । मेरे पास १० हजार रुपये ज़मीन में
छत्यन्त गोपनीय तोर पर गड़े हैं, उनका पता चलना भी सम्भव
नहीं । दजार-पांच सौ ऊपर भी मेरे पास हैं। एक दिन चोर ने
गला था दबाया । कद्दा--''जो है रखदो, वरना झाभी छुरा कलेजे
के पार है ।” ब आप कहदिये क्या मुमे सत्य कह देना चाहिये
कि इतना यद्द रद्दा छोर १० दजार बद्दां जमीन में गड़ा है ? मेरी
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