हिंदी भाषा आन्दोलन | Hindi Bhasha Aandolan
 श्रेणी : साहित्य / Literature

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
84 MB
                  कुल पष्ठ :  
314
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पा हैं. नर
श्रीमन्, मेरी सम्मति में यह घाव पर नमक छिड़कना है। यदि अंग्रेज़ी ही
संयक्त भारत की भाषा बनने वाली है, तो मुझे यह कहना पड़ता है कि यह संयुक्त
भारत एक अराष्ट्रीय भारत होगा। अंग्रेज़ी इस देश की भाषा ,न कभी रही है
और न आगे होगी। सदन की सन्तुष्टि के लिए मैं इसे सिद्ध करना चाहता हूं।
गत जनगणना के अनुसार भारत की ३२ करोड़ की कुछ जनसंख्या में अंग्रेज़ी
केवल ३ लाख व्यक्तियों द्वारा बोली जाती है और बहुत कम संख्या में समझी जाती
_ है। जनगणना रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि प्रति १०,००० व्यक्तियों में
केवल १६० पुरुष और १८ महिलाएं ही अंग्रेज़ी लिख व पढ़ सकती हैं। श्रीमन्
इस भाषा को भारत की राष्ट्रीय भाषा बनाया जा रहा है। १५० वर्ष के ब्रिटिश -
शासन में भारतीय जनसंख्या के इतने छोटे भाग को अंग्रेज़ी में शिक्षित किया जा
सका है। मैं इस सदन के माननीय सदस्यों से पुछना चाहता हूं कि इस गति से इस
देश की सारी जनता को अंग्रेज़ी सिखाने में कितने दिन लगेंगे। फिर कया यह
उचित भी है कि एक विदेशी भाषा दूसरे देश पर राष्ट्रीय भाषा के रूप में लादी
जाय । जो लोग अपनी भाषा को दबाते हैं, या दबाने पर बाध्य होते हैं, उनका.
. व्यक्तित्व समाप्त हो जाता है। आयरिश कवि थामस डेविस ने इस सम्बन्ध में...
अपनी मातृभाषा गेलिक में कहा है-- . , कि कह कदर,
“कोई राष्ट्र अपनी मातृभाषा को. छोड़ कर राष्ट्र नहीं कहला सकता । मातृ-
भाषा की रक्षा सीमाओं की रक्षा से भी जरूरी है, क्यों कि यह विदेशी आक्रमण को
रोकने में पव॑तों और नदियों से भी अधिक समर्थ है।”... . ः न.
श्रीमनु, इसीलिए इतिहास में विजेताओं की .सदा से विजित भूमि पर.
अपनी भाषा लादने की नीति रही है। विजित देशों ने भी सदा इन अत्याचारों
का सामना किया है और अपने क्षेत्र से भी अधिक अपनी मातुभाषा की रक्षा
की है। हम यह बात कई देशों के इतिहास में पाते हैं। इंगलैण्ड में भी नार्मन-
विजय के बाद विजेताओं ने: अपनी भाषा थोपने का प्रयत्न किया। समस्त
प्रशासनिक कार्य नार्मन-फँच में किये जाने लगे; किन्तु यह अधिक समय तक
नहीं चला और इसका स्थान ऐंग्ठो-सैक्सन भाषा ने ही. लिया। पोलैण्ड के
इतिहास में भी हम यही बात देखते हैं। जब रूस, प्रशिया व आस््ट्रिया ने
उसका विभाजन किया और वहां अपनी अपनी. भाषा लादने का प्रयंत्
किया, तो. पोलैण्डवासियों ने इसका घोर विरोध किया। उन्होंने उन विश्व-
.... विद्यालयों का बहिष्कार किया, जहां प्रशियन और रदियन भाषाएं पढ़ाई जाती
थीं और विल्ना व क्रैको के अपने पुराने विश्वविद्यालयों को पुनर्जीवित किया।
यहीं बात हंगरी में हुई। जब आस्ट्रिया ने हंगरी पर अपनी भाषा लादने
					
					
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