दर्शनसार | Darshanasar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर्दानसार । श्णु न्ब ्ट नशा थपतथन तथा धन सतह /धलथ्ाथतथा हलक तेन पुनः अपि च स्त्यु ज्ञात्वा मुनेः विनयसेनस्य । सिद्धान्त॑ घोषयित्वा सय॑ गत: स्वर्गढोकस्य ॥ ३९ ॥ अर्थ--विनयसेन मुनिकी सत्युके पश्चात्‌ उन्होंने सिद्धान्तोका उपदेश दिया, और फिर वे स्वयं भी स्वर्गठोकको चढ़े गये । अर्थात्‌ जिनसेन मुनिके पश्चात्‌ विनयसेन आचार्य हुए और फिर उनके वाद गुणमद्र स्वामी हुए । आसी कुमारसेणो णंदियडे विणयसेणदिक्खियओ । सण्णासभंजणेण य अगहियपुणद्क्खिओ जादो ३३ आसीत्कुमारसेनो नन्दितटे विनयसेनदीक्षित: । संन्यासमल्नेन च अगृह्दीतपुनदीक्षो जात: ॥ ६ ॥ अर्थ--नन्दीतट नगरमें विनयसेन मुनिके द्वारा दीक्षित हुआ कूमारसेन नामका मुनि था । उसने सन्याससे अष्ट होकर फिरसे दीक्षा नहीं ठी और परिवज्जिऊण पिच्छं चमर घित्तूण मोहकालिएण । उम्मग्ग संकलियं बागडविसएसु सब्वेछु # २४ ॥ परिवज्य पिच्छे चमरं गृहीत्वा मोहकलितिन । उन्मार्ग: संकछितः बागडविपयेषु सर्वेषु ॥ ३४ ॥ अर्थ--मयुरपिच्छिकों त्यागकर तथा चेंवर (गौके वार्ठलोकी पिच्छी) अहण करके उस भ्रज्ञानीने सारे वागड़ प्रान्तमें उन्मार्गका प्रचार किया। इत्थीण पुणद्क्खा खुछलयछोयस्स वीरचीरियत्तं । कक्कसकेसग्गहणं छट्ठं च गुणव्वद नाम ॥ रे५ ॥




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