भिखारी से भगवान् | Bhikhari Se Bhagwan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhikhari Se Bhagwan by श्री दुलारेलाल भार्गव - Shree Dularelal Bhargav

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav

Add Infomation AboutShridularelal Bhargav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(१३ ) शो, हो थो सज्जन कृपा कर झपनी सम्मति देकर थजुवादक को अनुयुदीत करेंगे, उनकी सम्मति का अगले संस्कार में आदर किया जायगा । एक बात अवर्थ है । चह्द यद कि कहीं-कहीं भाव की कदिनता झौर गुरुता के कारण कठिन शब्दों का भी प्रयोग करना पढ़ा है । परंतु थह भी दम्य मालूम होता दे; क्योंकि एक तो गुद-से-्गूद भावों को किसी भाषा में प्रकट कर देना केवल बहुत दी सिद्धइस्त लेखकों का काम हो सकता है; घर वे भी केवल मौलिक अंधों में ही ऐसा कर सकते हैं; घनुवाद में उनके लिये भी कठिनता पदतो है । और दूखरे शेरनी का दूघ सोने के दी घड़े में रक्खा वा सकता है, मिट्टी के घड़े में नहीं । प्रस्तुत पुस्तक को घतंसाव रूप देने में सुकको श्रीठाकुर नरसिंह नी बी० ए० ( वकवल, श्ाजमगढ़-निवासी ) और ठाझर प्रसिद्ध नारायणसिंह नी से नो सद्दायता मिली है, उसके लिये मैं झपना दादिक धन्यवाद प्रकट किए बिना नहीं रद सकता । साथ-द्दी-साथ इन सुहदूपरों के मोर्खाइन के दिये भी मैं पने को शाभारी समकता हूँ; क्योंकि उससे भी सुमको बहुत कुछ सद्दायता मिली है । घंत में मैं श्रीयुत लेफ्टिनेंट राजा दुर्गानारायशसिंदजू देव तिरवाघीश के प्रति, जिनकी कीोति का सूर्य दिन-पर-दिन 'झाकाश' दल में चढ़ता जा रहा है, अपनी दादिक कृतशता सविनय प्रकट करना चाहता हूँ; क्योंकि यदद उन्हीं की कृपा का फल दै कि यह पुस्तक इतनी शीघ्र और इस संद्र रूप में प्रकाशित दो सकी है। एक बात घौर है, जो मैं कदना तो नहीं चाहता था, परंतु रे बिना रद भी नहीं जाता । वद यह कि नो कुद इस पुस्तक के संबंघ में था झन्य स्थानों में में कर पाया या पाता हूँ, वह सब कुक अपने परम पूउय शद्धारपद चघन्रिय-कुल-सूपण दैशर्वशावतंस श्वासी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now