जीवन और शिक्षक | Jivan Or Shikshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
225
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दौंटुम्विक पाठशाला श्छ
डारीरकी' यात्रा, यह उदार अर्य मनमें वेठाना चाहिए । मेरी दरीर-यात्रा
मानी समाजकी सेवा और इसीलिए ईदवरकी पूजा, इतना समीकरण
दृढ़ होना चाहिए । भीर इस ईदवर-सेवामें देह खपाना मेरा कर्तव्य है
और वह मुक्ते करना चाहिए, यह भावना हरेकमें होती चाहिए । इसलिए
चह छोटे वच्चोंमें थी होनी चाहिए । इसके लिए उनकी झवित भर उन्हें
जीवनमें भाग लेनेका मौका देना चाहिए और जीवनकों मुख्य केन्द्र वनाकर
उसके आसपास आवद्यकतानुसार सारे दिक्षणकी रचना करनी चाहिए ।
इससे जीवनके दो खंड न होंगे । जीवनकी जिम्मेदारी अचानक था पड़ने
से उत्पन्न होनेवाली अड़चन पँदा न होगी। अनजाने थिक्षा मिलती
रहेंगी, पर 'शिक्षणका मोह नहीं चिपकेगा और निप्काम कर्मकी ओर
भ्रवृत्ति होगी ।
जै
६
कौटुस्बिक पाठशाला
विचारोंका प्रत्यक्ष जीवनसे नाता टूट जानेसे विचार निर्जीव हो जाते
हूं भीर जीवन विचार-दुन्य वन जाता हूैँ। सनुप्य घरमें जीता है भौर
मदरसेमें विचार सीखता हूँ, इसलिए जीवन और विचारका मेल नहीं बैठता ।
उपाय इसका यह हैं कि एक ओरसे घरमें मदरसेका प्रवेश होना चाहिए
और दूसरी भमोरसे मदरसेमें घर घुसना चाहिए । समाज-लास्त्रकों चाहिए
कि झालीन कुटुम्व निर्माण करे और शिक्षण-शास्त्रको चाहिए कि कौटुम्विक
पाठशाला स्थापित करे ।
छाचालय अयवा शिक्षकोंके घरको थिक्षाकी बुनियाद मानकर उस पर
दिनणकी इमारत रबनेवाली झाला ही कोटूंबिक क्ञाला हैं । ऐसे कौटुविक
शालाके जीवनक्रमके संवंघ में--पाठ्यक्रमकों अलग रखकर--ऊुछ सूचनाएं
इस लेखमें करनी हैं। वे इस प्रकार हैं--
(१; ईदवर-निप्ठा संसारमें सार वस्तु है। इसलिए नित्यके कार्यक्रम-
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