जीवन और शिक्षक | Jivan Or Shikshan

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Jivan Or Shikshan by आचार्य विनोबा भावे - Acharya Vinoba Bhave

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दौंटुम्विक पाठशाला श्छ डारीरकी' यात्रा, यह उदार अर्य मनमें वेठाना चाहिए । मेरी दरीर-यात्रा मानी समाजकी सेवा और इसीलिए ईदवरकी पूजा, इतना समीकरण दृढ़ होना चाहिए । भीर इस ईदवर-सेवामें देह खपाना मेरा कर्तव्य है और वह मुक्ते करना चाहिए, यह भावना हरेकमें होती चाहिए । इसलिए चह छोटे वच्चोंमें थी होनी चाहिए । इसके लिए उनकी झवित भर उन्हें जीवनमें भाग लेनेका मौका देना चाहिए और जीवनकों मुख्य केन्द्र वनाकर उसके आसपास आवद्यकतानुसार सारे दिक्षणकी रचना करनी चाहिए । इससे जीवनके दो खंड न होंगे । जीवनकी जिम्मेदारी अचानक था पड़ने से उत्पन्न होनेवाली अड़चन पँदा न होगी। अनजाने थिक्षा मिलती रहेंगी, पर 'शिक्षणका मोह नहीं चिपकेगा और निप्काम कर्मकी ओर भ्रवृत्ति होगी । जै ६ कौटुस्बिक पाठशाला विचारोंका प्रत्यक्ष जीवनसे नाता टूट जानेसे विचार निर्जीव हो जाते हूं भीर जीवन विचार-दुन्य वन जाता हूैँ। सनुप्य घरमें जीता है भौर मदरसेमें विचार सीखता हूँ, इसलिए जीवन और विचारका मेल नहीं बैठता । उपाय इसका यह हैं कि एक ओरसे घरमें मदरसेका प्रवेश होना चाहिए और दूसरी भमोरसे मदरसेमें घर घुसना चाहिए । समाज-लास्त्रकों चाहिए कि झालीन कुटुम्व निर्माण करे और शिक्षण-शास्त्रको चाहिए कि कौटुम्विक पाठशाला स्थापित करे । छाचालय अयवा शिक्षकोंके घरको थिक्षाकी बुनियाद मानकर उस पर दिनणकी इमारत रबनेवाली झाला ही कोटूंबिक क्ञाला हैं । ऐसे कौटुविक शालाके जीवनक्रमके संवंघ में--पाठ्यक्रमकों अलग रखकर--ऊुछ सूचनाएं इस लेखमें करनी हैं। वे इस प्रकार हैं-- (१; ईदवर-निप्ठा संसारमें सार वस्तु है। इसलिए नित्यके कार्यक्रम- रे क्‍ि




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