ज्ञानसूर्योदय नाटक | Gyan Suryoday Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है ज्ञानसूर्योदय नाटक ।
रामचन्द्र पीछे खस्थ शान्त और परिपूर्णबुद्धि होकर वैरागी हो
गया था ।” पूर्वेकाकमें जम्बूस्वामि, सुदशन, धन्यकुमार
आदि महाभाग्य भी पहले संसारका आरंभ करके अन्तमें शान्त
होकर संसारसे विरक्त हो गये हैं । उसी प्रकारसे इस समय ये
सभासदगण अपने पुण्यके उदयसे उपशान्तचित्त हो रहे हैं ।
अतएव इस विषयमें आश्व्य और सन्देह करनेके लिये जगह
नहीं है ।
नटी--अस्तु नाम । अब यह बतलाइये कि, इन सभ्यजनोंका
चित्त किस प्रकारकी भावनासे अथवा किस प्रकारके दृश्यसे रंजाय-
मान होगा!
सूत्रधार--आयें ! वैराग्य भावनासे अर्थात् विरागरसपूर्ण
नाटकके कौतुकसे ही इन लोगोंका चित्त आहादित होगा । 5ं-
गार हास्यादि रसोंका आचरण तो आज कल लोग खमावसे ही
किया करते हैं । उनका दृश्य दिखलानेकी कोई आवश्यकता नहीं
है। उनसे मनोर॑जन भी नहीं होगा । क्योंकि जो भावना-जो दृश्य
अदष्टपूवे होता है, अथात् जो लोगोंके लिये सबंधा नवीन होता
है वही आश्ययकारी और हृदयहारी होता है । किसीने कहा भी
कि
अदष्टपूर्व ठोकानां प्रायो हरति मानसमू ।
दृश्यश्चन्द्रो द्वितीयायां न पुनः पूर्णिमोज्धवः ॥
अथोत्--जिस चीजको पहले कभी न देखी हो, लोगोंका मन
प्राय: उसीसे हरण होता हे-उसीके देखनेके छिये उत्सुक होता
User Reviews
ankita
at 2020-02-12 12:25:56