चाणक्यनीतिदर्पण | Chankyanitidrpan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ही कर हि ७ डष,
सखस्तुपर्तव्य:मत्यक्षाद्वपदपुः [|
भिनत्तिवाक्यशट्येनअरशंकंटकंयथा ॥ ७9 ॥
दोहा-मरखकों तजिदीजिये, मगट द्विपद पदुजान ।
वचनचात्यते बेदी, अंधाहिं कांट समान ॥ ७ ॥
भा-मूखकों टूर करना उचित है. इस कारण कि; देखनेमें वह
मनुष्य है, परन्तु यथारय देखेतो दो पांचका पु है और वाक्यरूप
शल्यसे दूघता हूं जंसे अन्धेको कांदा ॥ ७ ॥
रूपयावनसम्पन्नावज्ञाउकुठसम्भवाः ॥
विद्याहीनानशोभन्तेनिंगधघाइवर्किशुकाः ॥ ८ ॥
सोरठा-बिद्या विन छुलमान; यदपि रूपयीोवनसाहित ।
सुमन पलास समान; सोह न सारभक 1वेना॥८॥
भार-सुंदरता, तरुणता और बड़े छुठमें जन्म इनके रदतेभी
विद्यादीन पुरुष विनागन्ध पठासटाकके फूलके समान नहीं शोभत्ते८॥
कोकिलानांस्वरोरूपंख्रीणांरूपंपत्तिन्रतमू ॥
विद्यारूपकुरू पाणांक्षमारूपतपर्विनामू ॥ ९ ॥
दोहा-रूप को लिलन स्वर तियन, पतिव्रत रूप अनूप
विद्यारूप कुरूपको; क्षमा तपस्विन रूप ॥ ९ ॥
भाग्नकॉोकिलाकों झाभा स्वर ६ ।ख़याका जाभा पातिघ्रस्प;
कुरूपाक झोभा विद्या द, तपास््रयाका साभा क्षमाई॥ ||
देकेकुठस्याथश्रामस्याथकुछत्यजेत् ॥
यामुंजनपद्स्याथआत्मार्थप्थिवीत्यिजत् ॥ १० ॥
दोदा-एक त्यजे कुलअथ लोगे, मम कछुलडुके झर्थ ।
तजे श्राम देदाथ लंगि, देखो आतमअध ॥१०॥
मा०-कठके निमित्त एकको छोडदेना चाहिये; ग्रामंक हेतु
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