तसव्वुफ़ अथवा सूफीमत | Tasavvuf Athava Sufimat

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Tasavvuf Athava Sufimat by चन्द्रवली पांडे-Chandravali Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उद्धव पुन समझा ।. इस प्रकार स्वतः इसलामे में तसब्वुफ के सम्बन्ध में मतमेद रहा । कभी उसके विषय में मुसढिम एकमत न हो सके । : मुसलमानों के पतन के बाद मसीद़ियों का सितारा चमका । सूफियों भर मसीह -सन्तों में बहुत कुछ साम्य या ही । मसीदियों ने उचित समझा कि सूफ्यों को रद चूरा नहीं तो कम से कम आधा तों अवंध्य ही मसीही सिद्ध किया जाय | निदान होंने कदना झुरू. किया कि आरंभ के सूफी यूहनना वा. मसीह के शिष्य थे | यादरसियों के छिये तो इतना कह देना काफी यथा, पर मत्ीद्ी मनीषियों को इतने से संतोष न हो सका । उन्होंने देखा कि जेसे कुरान की सद्दायता से तसब्चुक इसढाम ' का प्रसाद नहीं सिद्ध दो सकता बसे ही इंजील के आधार पर भी उसको मसीह्ी मत का प्रसाद नहीं कहा जा सकता । तब:तसब्बुफ आया. कहाँ से १? आाय-उद्गम' तो उनको रचिकर न था, फिर भी, उन्हें उन विद्वानों को दांत करना था जो तसे- . च्युफ को आयं-संस्कार का अभ्युव्यान वयथवा वेदांत का मघर गान समझते थे | : अर, उन्होंने नास्टिक और मानी मत के साथ ही साय नव-अफलाचूनी मत की शरण ली | अंतर नव-अफलातूनो-मत की. सद्दायता से उन प्रमाणों का निराकरण :. किया गया जिनके कारण तसब्बुफ भारत .का प्रसाद समझा जाता था । किंठु जब . उससे भी पूरा न पढ़ा तंत्र विवश हो, इतिदास के आधार पर, चाद के सूफियों पर जारत का प्रमाव मान लिया यया- और तसब्युझू अंशतः प्राचीन शाय-संत्कृति का सभ्युव्यान सिद्ध हुआ । दर था तो भी मुसलिम साहित्य के ममज्ञ पंडितों के “सामने सूफीमत के उद्भव - का प्रंदन बराबर बना रहा ) . अन्त में उनको उचित जाने. पढ़ा कि इसलाम की : माँति दी उसको भी कुरांन का मत मान लिया जांय । निदान, निकल्सन तथा . जाउन सह - मम्ों ने - दूफीमत का मूल:स्ोत. कुरान में . माना । माना, कि कुरान में कतिपय स्थल सूफियों के सवंया .मेनुकूल हैं और उन्हीं के आधार एर के. (१) एछिटिरेरी हिस्टरी आव 'पर्दियां, प्र० ३०१) प्र की है की (२) ए छिटेरेरी हिस्टरी भाव दी मरबू्स, पूं० रई |




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