पूर्व और पश्चिम कुछ विचार | Purv Aur Paschim kuch Vichar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Dr. Sarvpalli Radhakrishnan
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रमेश वर्मा - Ramesh Verma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ दे
पुरानी हैं।
नियोलिधिक युग में क्रान्ति हुई । झादमी लाय-सम्रह करना छोडकर साथ
उत्पादन करने शगा । भनान की लेती पौर पशुपालन इस परिवर्तन के मुश्य पतकषण
थे भौर इस्दकि कारण जगसंख्या तेजी से बढ़ने सगी । इससे एक नबीम भध
व्यवस्था का उदय हुपा । पैनी सकड़ी या कुदास से समीन खोदना फिर बैस मा
इसी परह के दूसरे भानवरों द्वारा सींचि जानेवाले इन का इस्तेमाल मवियों से
लहरें निकासपर जमीन की सिघाई करना --इन सबके कारण नये सिलप का
आारम्म हुमा । नियोलिधिक कान्ति का धर्थ है प्रकृति के प्रति एक मया तथा भ्षिक
आकमणार्मक दृष्टिकोण । इस युग के मापवों ने प्रइतिप्रदत्त चीर्शों को चुपनाप
स्वीकार म गरके प्रपनी भावदयकतानुसार उन्हें बदला भी । उन्होंने प्राकृतिक रुप
से न पाई भानवाली कृषिम वस्तु्ो--मसे मिट्टी के बतन, इंटें कपड़े--का निर्माण
किया । चहहनि पष्टिये धनाए वे पथु-पासन करने, घर बनाने भीर जलवायु के
परिर्तेनों से प्रपमी रक्षा करने के सिए सूती या उनी कपड़े बुनकर मा घमडा
सिस्तकर पहनने के वस्त्र वनाने सगे । स्वयं को भनुणासित गरके उ होने स्वामी
समुदार्यों की नींव रासी । लाश-उत्पादन सम्यता भी प्रावश्यक दारत है भीर प्राप्त
प्रमाणों से पता चलता है कि इसका भारम्म मिस्र धौर मप्यपूर्व में यूरोप के किसी
मी समान से सगमग २००० सास पहसे हो भुका था ।”
सामव-यीवन सहु-भस्तित्व भौर सहयोग का सयुक्त भीवन है। यह सामु
दायिव शी बन भड़ प्रक्रिपा महीं है गतिमय है छिसर्मे क्रियाएं प्रतिक्रियाएं होती
हैं। मघुमगसी के छु्ते मा नींटियों की बांवी की तरह सामाजिक या सहयोगी
जीवन पर प्रवृत्तियों का नहीं बल्कि भर्ष भर उद्देश्य का प्रमाव पड़ता है। इसी
मानसिक ययाम के कारण मु मानव-समाज बन जाता है । मापा भौर सकेतों
तथा घारमिक भर राजनीपिंक संस्पाभ्षों द्वारा यहो यपार्थ प्रकट होता है ।
सासों बर्पों के भ्प्राप्य प्रागू इतिहास में मानव के निर्माण थी दिषा में निद्चित
कदम उठाए गए । उसकी तुसना म पिछने छः हडार दर्पों का लिखित इतिहास
थोड़े हो समय का हैं। उम लम्वे युरों में प्रनेक भाकार के मनुष्य दुनिया के विभिन
मागों में रहते वे भोर एव दूसरे के यारे में उम्हें तमिक भी शान म था ।
यूरोप को केन्द्र मानकर पूर्व प्रौर पदिचम था भ्रन्तर वतसाया जाता है। नौगो
₹ प्रोफेसर बी० गानन चाइलट बा विचार दे कि सम्मावना इस बस की ई कि पूराप
में निवोलिपिक भवरास्य का कमरा प्रयेश निकयपूर्व से टु्ा था फिर सी ये रम कर बरतें
हैं, इस निसार गए कोई नि दघत प्रनाय नहीं मिलगा ।-टि सूराघिवम इस्टरिटेन्स प्रथम र
(स्ह५४), पृष्ठ डरे |
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