भूदान - गंगा तृतीय खण्ड | Bhoodan Ganga Khand 3

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Bhoodan Ganga Khand 3 by आचार्य विनोबा भावे - Acharya Vinoba Bhave

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य विनोबा भावे - Acharya Vinoba Bhave

Add Infomation AboutAcharya Vinoba Bhave

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
+. अ्टिसा के तीन अथ ब्छ दम न किसीसे डरेंगे, त किसीको- डरायेंगे ५. हिंसा में विश्वास 'रंखनेवाले सदा ' मयमीर्टि रहते हैं । .वे शरीर को ही आत्मा समझते हैं । शरीर को-कोई मारे या पीटे, तो उसकी करण आ ' जाते है | ,त्वाप जय बच्चो को पीटता या गुरु जय दिप्य की ताड़ना करता है, तो वद्द उसे हिंतावश होने की ताढीम देता है। यह सच हू कि बाप वेंटे को प्रीटता. है, तो उसकी भलाई के छिएं पीटता है; लेकिन उससे वहूं उसे.डंरपोक ही बमाता है । चह कहता है कि तेरे शरीर को कोई पीड़ा दे, तो उसकी झरण में तले जाओ । यह तालीम मयभीत बनाती है । अगर भयभीत बनाकर कोई झच्छा काम हो 'ज़ीय, तो उसमें कोई सार नहीं; निर्मष होकर दी सदा आगे. बढ़नां चाहिए । अगर हम अपनी अहिंसा की दक्ति बढ़ाना चाहते हैं, तो यह न्रत लेना होगा कि इस ने तो किसीसे डरेंगे और न किसीको डरायेगे ही ।” जो दूसरों को डरायेगा, धंमकायेगा, बह खुद भी डरेगा । इसलिए हम दूसरों को डरायेगे नदी और 'न दूसरों, से डरेंगे ही । हमे शिक्षालय और विद्यालय मे यद्दी तालीम देनी दोगी । गुरु शिष्य से कहेगां कि तुम्हे कोई डरा-घमकाकर तालीम दे, तो मत मानो । बाप भी वेटे से कह्देगा * कि कोई धमकाकर या सोटा छेकर पीटता है, तो मत मानों; अगर विचार से समझाता दो, तो मानो । कोई मारे-पीटे या कत्ल कर दे, तो मत मानो । कारण तुम दारीर नद्दी, दारीर से भिन्न आत्मा हो। झरीर तो मरनेवाला ही है। जो दूसरों को दवा पिल्मता है, उस डॉक्टर का भी शरीर उसे छोड़ ही जाता है। इसलिए दारीर की आसक्ति मत रखो । आस्मा की भूमिका में रहो । सासझ, कोई मुझे मार नद्दीं सकता; पीट नहीं रुकंता, दबा नहीं सकता या धमका नहीं सकता--यदद जो समझेगा, वहीं दूसरों को भी न घमकायेगा, न दबायेगा और न डरायेगा ही । इसीका नाम 'अद्सा' है | निर्भपता दो प्रकार की होती है : ( १) दूसरे को न पीटना, न डराना और ( २ ) दूसरे से न डरना । अग्रेजों के राज्य में हम इतने डर गये थे कि साइय का नाम छेमे से ही कौपते थे । पर इधर अप्रेजों से डरते थे, ठो उधर दरिजनों को दाते भी थे | एक शोर खुद सिर झुकाते थे, तो दूसरी ओर दूसरों से झुकवाते थे ! इधर के र्‌




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now