सल्तनत कालीन सामाजिक तथा आर्थिक इतिहास | Saltanat Kalin Samajik Tatha Arthik Itihas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
566
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)'दिल्ली सल्तनत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि र्प
संपर्ष के बाद उसे अधिकृत कर लिया ।* १३०५ ई० में उसने मालवा,” *
दे०८ ई० में सिवाना,** १३११ ई० में जालौर विजित कर लिया ।* * जालौर .
के पतन के पश्चात् सम्पूर्ण उत्तरी भारत उसकी मुट्ठी में आ गया । उत्तर पश्चिम मैं -
उसकी सेना सिंध व मुल्तान तक व उत्तर पूर्व में नेपाल की तराई तक पहुँची । इसी
काल में उसने मंगोल आक्रमणों निष्फल वनाया । इस समय दक्षिण में चार प्रमुख
हिन्दू राज्य थे--चिन्ध्याचल पर्वत के दक्षिण में देवगिरि का राज्य, उसके दक्षिण पूर्व
में तेलंगाना का राज्य जिसकी राजधानी वारंगल थी, तेलंगाना के दक्षिण-पश्चिम में.
'होयसलो द्वारा शासित द्वारसमुद्र का राज्य त्तथा सुदूर दक्षिण में पाण्ड्यों द्वारा शासित
मावर का शक्तिशाली राज्य था । इन विभिन्न राज्यों पर मलिक, काफुर ने आक्रमण
करके उन्हें कर भेजने के लिए विवश किया ।** दक्षिण के प्रत्येक अभियान से वह
अपार धन, आशभूपण, हीरे-जवाहरात आदि लेकर दिल्ली लौटता था ।** डॉ० किशोरी
सरन लाल के अनुसार सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के राज्य की सीमाएँ इस प्रकार
थीं--उत्तर-पश्चिम में काबुल व गज़नी तक; दीपालपुर गाज़ी मलिक के अन्तर्गत था,
मुल्तान व सिविस्तान पहले जाफर खाद उसके वाद मलिक काफुर के अन्तर्गत थे,
'पंजाब, उत्तर प्रदेश व सिंध केन्द्रीय शासन के अन्तर्गत थे । राजपुताना की विभिन्न
रियासतें करद का भुगतान कर रही थीं, पूर्व में उसके साम्राज्य की सेना बनारस व
अवध से आगे नहीं थी । विहार व वंगाल दोनों स्वतंत्र थे । मध्य-भारत में चंदेरी,
'एलिंचपुर, धार, उज्जैन और माण्ड्र केन्द्रीय प्रशासन द्वारा नियुक्त अधिकारियों के
अन्तर्गत थे । गुजरात भी सल्तनत के अवीन था । दक्षिण के चार हिन्दू राज्यों में
केंचल पाण्ड्य राज्य को छोड़कर लगभग सभी राज्य केन्द्र को करद भेजते रहे । * ”
सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के परलोक सिधारते ही न तो उसका साम्राज्यवाद
मिट्टी में मिला और न ही उसके साम्राज्यवाद की दुर्दशा उसके उत्तराधिकारियों की
चारिविक दुर्वलताओं के कारण हुई । उसका पुत्र कुतुबद्दीन मुबारकशाह खिलजी,
यद्यपि मालवा से लाए हुए वराद्ट हसन, जिसे उसने खुसरो खाँ की उपाधि से विभुषित
न
किया, पर बुरी तरह से आसक्त था, किस्तु फिर भी. अन्य अमीरों ने साम्राज्य के
रवरूप को विगड़ने न दिया । मलिक जाफर खान ने गुजरात मे सुव्यवस्था बनाए
रक््खी । उसके बध के पश्चात सुल्तान ने खुसरो खान के भाई हिसामउद्दीन को गुजरात
का बली नियुक्त किया, किन्तु वह वहाँ का प्रशासन संभालने में असफल रहा ।
गुजरात के अमीरों ने उसे पकड़ कर दिल्ली भिजवा दिया ।** तदुपरान्त बहाउद्दीन
कुरेंश्ी को सद्र-उल-मुल्क की उपाधि प्रदान करके गुजरात भेजा गया ।** उसने
वहाँ जाकर गुजरात को दिल्ली से पृथक होने से बचा लिया । इसी प्रकार दक्षिण में
आईन-उल-मुश्क ने देवगिरि के शासक रामदेव के दामाद हरपालदेव को दिल्ली से प्रथक
न होने दिया । जब आईन-उल-मुल्क को दिल्ली बुला लिया गया तो सुल्तान कुतुवुद्दीन
मुवारकशाह ने स्वयं देवगिरि राज्य पर आक्रमण कर भप्रल १३१७ ई० में उसे,
विजित कर सल्तनत में मिला लिया । वहाँ के शासक हरपाल देव को पकड़ लिया
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