भारतीय अर्थशास्त्र की रूपरेखा | Bharatiy Arthashastra Ki Rooparekha

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Bharatiy Arthashastra Ki Rooparekha  by शंकर सहाय सक्सेना - Shankar Sahay Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिच्छेद्‌ १ उद्योग-घन्पे साधारण विवेचन श्रान के कल शरीर कारखाने के युग में भी श्रौद्योगिक दृष्टि से भारत एक पिछड़ा हुआ देख है श्रीर उसके श्रार्थिक जीवन में खेती की प्रधानता दै। देश के झ्रार्धिक जीवन के इस वर्तमान खेती-प्रधान स्वरूप को देख कर यद्द कल्पना नहीं होती कि कभी इस देश के उद्योग-धघन्ये भी उन्नत श्रवर्था में थे श्रीर मारे आर्थिक जीवन में उनका म६त्य था। पर श्रीद्योगिक कमीशन की रिपोर्ट से लिया गया निम्नलिखित झंश इस संघंभ में चल-स्थिति पर समुचित प्रकाश डालता है ! घौधोरिक कमीशन का कहना है :--''उस समय, जबकि पश्चिमी यूरोप में जो कि श्राघुमिक श्रीयोगिक व्यवस्था को उन्मत्यान दै, श्रलम्य लोग निवास करते थे, भारत श्रपने राज-नवात्रों की सम्पत्ति और श्रपने कारीगरों के कौशल के लिए विख्यात था । श्रीर इसके चहुत समग्र बाद भी, लबकि पश्चिम के ब्यापारी पहले पदल यहीं श्राए, यह देश श्रौद्योगिक विकास की इष्टि से पश्चिम के जो अधिक उन्नत राष्ट्र हैं उनसे यदि श्रागे बढ़ा हुश्रा नहीं तो किसी प्रकार कम हो नहीं था 1”? श्रत्वन्त प्राचीन काल से भारतवासी श्रपने विभिन्न प्रकार के कला- कौशल, नैसे लुन्दर ऊनी वनों के उत्पादन, श्रलग-श्रलग रंगों के समन्वय, घाव श्रौर जवाइरात के काम तथा इघ श्ादि श्रकों के उत्पादन के लिए संसार- प्रत्तिद्ध रहे हैं । इस बात का प्रमाण मिलता दै कि सच ई० पू० ३०० में भारत श्रीर वेवीलोन में व्यापारिक सम्बन्ध थे । सन्‌ ई० १-२००० तक की पुरानी मिल की क्रत्रों में जो 'ममीज्ष' ( शव ) हैं, वे भारत की बहु चढ़िया मलमल में लिपटे हुए पाए गए हैं । लोदे का उद्योग भी प्राचीन भारत में बहुत उन्नत श्रवस्था में था । उसके द्वारा केवल देश की श्रावश्यकता ही पूरी नहीं होती थी, बल्कि उसमें उत्तन्न माल विदेशों को भी भेजा जाता था। लगभग दो दजार वर्ष पुराना दिल्ली के पास जो मशहूर लोदे का स्तम्भ दै, उससे मालूम पढ़ता है कि उस समय की कारीगरी कितनी उच्च यी जिसे देखकर श्रान का इंजीनियर भी श्राश्चय में पढ़ लाता है। भारत का इस्पात फ़ारस, श्ररब और इ'गलेएड तक को मेजा जाता था। सारांश यह दै कि बहुत शचीन काल से ही भारत का लोहे श्रोर इस्पात का उद्योग श्रत्यन्त उन्नत श्रवस्था को प्राप्त कर चुका था। चास्तव म॑ यह भारतीय उद्योग का ही प्रताप था कि उस समय भारत से व्यापार करना बहुत लामग्रद माना जाता या श्रौर यूरोपीय देशों में




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