आचारांग के सूक्त | Acharang Ke Sukt

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Acharang Ke Sukt by श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूसिका . हूं * “श्राचाराग का द्वितीय श्रुतस्कंघ बहुत बाद का है। यह केवल इतने मात्र से जाना जा सकता है कि दूसरे श्रुतस्कथ के श्रघ्ययनो को “चूला' कहा गया है । चूला श्रर्थात्‌ परिदिष्ट? ।' द्वितीय श्रुतस्कंघ प्रथम श्रुतस्कध की श्रपेक्षा बाद का है परन्तु फिर भी वह बहुत प्राचीन है श्रौर नियु क्तिकार भद्रबाहु के समय में वह श्राचारांग में समाविष्ट था इसमें कोई सन्देह नही । ३: प्रतिपाद्य विषय : प्रथम चूला मे ७. अध्ययन हूँ--जिनमें क्रमश पिडेषणा, शाय्या--चसति, इरयया--विहार, भाषा, वस्त्रेषणा, पात्रषणा, झवग्रह- प्रतिमा के नियम हैं । इस चूला का नाम नहीं मिलता । दूसरी चला में भी ७ श्रध्ययन हूँ । जिनसे क्रमदा स्थान, निषीथिका, उच्चार-प्रस्वण, शब्द, रूप, परक्रिया, श्रत्योन्यक्िया विषयक नियम हूँ। इस चूला का नाम सत्तिकया है। तीसरी चूला मे एक ही अ्रध्ययन है । इसमे भगवान महावीर का जीवन-चरित्र तथा पाँच महाब्रत श्रौर उनकी २५ भावनाओ का हृदयग्राही वर्णन है । यह 1. & छाजिणफ एप ्रताधाए प्रालापन्‍ाा्ट (४0. पा, फ $37) «560०० 1 0 फिट ैप्रदाधाएछु8 पड 2. ््पदी। हि. पाए, 25 एक 96 8८60 9४ फिट एट€ दिल. 0 फिट इफन्‍ा2-तांफ़ंअं0फड 9लाए्छ 6८५- टफ06व 85 (पाश5, 1. €. घूजूुटाएताट८5,




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