पतिता | Patita

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Patita by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दा चर र लगता है ?” *जी नहीं 1” *'घहू जगह पस्द नहीं *” “जगह के बया कहने हैं ' ” “पे पसन्द नहीं 2 “सरकार बया फर्माते है 1 ” मैं इरमा गई । एक आदमी शराब, प्यालिया, और कुछ खाने की चीजे चने प्रथा । महाराज ने प्याला मरकर कहा, शिस होरा, परदे तो नहीं परतीं ? करोगो, तो भी पीना तो पड़ेगा “हुजूर, मैं नहीं पीतो 1 “मगर मेरा हुवम है ।” *ीं मुआफी चाहती हु ।” कया हुवमउदूली वरसी हो ?” 'फोरो इतनी सजाल 1 * बेवचूफ औरत, पी 1 क्षघ-भर मे उत की आयें लाल हो गई और हंयीरियां दढ गई । हें नपी सफूगी ! सूदी से लाबुक उठाकर उन निर्देयी ने सवाल उदडाना शुरू कर दिया । मेरे विह्लाने से कमरा गूज उठा । में तडपकर बरती में सोटने सगी । पर यहा बचानेवाला फीन था हे बे चाबुक फेंककर बैठ गए । मैं ज्योडी उठी, उन्होंने प्याला भरकर कहा, पिओ 1” में गटंगट पी गई 1 गेरे हाथ थे प्याला लेफर उन्होंने मेरे पास आकर कहा, “होरा, मरी दोस्त ! आइन्दां बसी हुश्स उदूलों करे डिस्मत से दरना ९ अरे, गया तुम्हारी साडी भी सराद हो गई!” दुदना रद उन्होंने घण्टी बाई 1 एफ लडहा आ हायर हुआ 1 उसे डर दिया, “साथी, डपोड्ियो से एक उम्दा सादी ले जाओ 1” साड़ी भाई । उसकी कीमत दो हडार से दम न होगी । बसी साशी मैंने कभी न देसी यी । मैं अवाकू रद गई । ऐसा देय झाइनो श्श्‌




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