गृह नक्षत्र | Grah Nakshtra
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
53 MB
कुल पष्ठ :
348
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० प्रह-नच्षत्र
लोग कहते हैं, इमारा सूर्य इस ब्ृहत् झाकाशमण्डल में, इसी
तरह, निय प्रथिवी के परिभ्रमण का कौतुक देखा करता है।
सूये ता तुम्हारी भाँति झाकाश में रिथिर खड़ा रहता हे श्रौर
हमारी प्रथिवी, घरणीघर की भाँति, सुये के चारों श्रार घूमा
करती है। वह सीधे तार से नहीं घुमती, किन्तु धरणीधर
जैसे स्त्यं घूमकर तुम्हारे चारों श्रार घूमता था, ठीक उसी
तरह हमारी प्रथिवी भी पह्चिये की भाँति घूम-घूमकर सूये की
परिक्रमा करती है |
एक श्रोर उदाहरण दिया जा सकता है |
यथा--एक साफू-सुधरी मेज़ पर एक लम्प रक्खा है
घ्रौर उसी टेबल के ऊपर एक लट्टू, घुमाया जा रहा हे।
यदि इस लट्टू, को लम्प के चारों श्रार घुमाया जाय ता हमारे
उस घूमनेवाले घरणीधर की तरद, लटू, स्वयं घूमते-घूमते लम्प
के चारों श्रार परिक्रमा कर श्रावेगा। विद्वान लोग कहते हैं
कि सूये लम्प की भाँति स्थिर होकर श्राकाश में खड़ा है;
हमारी प्रथिवी दी गाड़ी के पद्चिये की भाँति, उलट-पलटकर
सुये के चारों श्रार दिन-रात घूमती है । धरणीधर चाहे ते
एक मिनट में तुम्हारे चारों श्रार घूम श्रा सकता है, किन्तु
प्रथिवी को इस प्रकार सूये की परिक्रमा करने में पूरे तीन सो
पेंसठ दिन लग जाते हैं। पण्डितें ने इन सब बातों का
निश्चय किया है। श्रब तुमको यद्दी बताऊँगा कि इन लोगों
ने यह निश्चय कैसे किया है ।
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