राबिन्सन क्रूसी | Rabinsan Krushi

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Rabinsan Krushi by श्री जनार्दन झा - Shri Janardan Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कूसे का सागना। श्३्‌ इस प्रफार भागने का सय सामान ठीक करके हम लोग रवाना हुएए। बन्दर के सामने जो किला था उसझे पहरेदार हमारे परिचित थे। इसलिए उन लोगों ने मुझ पर विशेष लदंप न किया | हम लोग प्रन्दर से डेढ दो मील पर जा कर, नाप का पाल गिरा फर, मनी पकड़ने लगे। उस समय हा मेरी इच्छा के पिरुद्ध चद रही थो। उत्तरीय वायु बहने से म॑ स्पेन के उपकुल या केडिज उपसागए में जा पहुँचता। फिन्तु हवा जेसी चाहे वहे, में इस कुत्खित स्थान के त्याग कर जरूर जाऊँगा-यद म॑ने दढ सफटप कर लिया था। पोड़े जो भाग्य में बद होगा, हागा। भत्रिप्य फ्री खिन्‍्ता भविष्य में की जायगो, अभी जिस तरह हो यहा से रफ्चक्कर होना दी दीक हे । ।.. हम लोग बडी देरतकू घनसी उाले पेठे रहे, पर एफ भी मउली नहीं पकड सके, कारण यह फि मझली मेरी बनसी को निगल भी जाती थी तो भी म॑ लग्गी के नदीं सौचता था। मैंने सूए से कदह्ा--यहाँ मछली पकडने की छुटिया न होगी, जरा गहरे पानी में चलो | वह राजी दहोगया । चह नाव के श्रप्त भाग फो ओर था, उसने पाल तान दिया। मेरे दाथ में नाप सेने का लग्गा था।में धीरे घोरे नाव को सेकर फिनारे से पक्र डेढ मील दूर ले गाया । नव म॑ने मछली पकडने का बहाना करके नाय के ठहराया ओर उस यालक के हाथ में लग्गा देकर मेंने नोका रे सम्मुस् की ओर गया । बहाँ जाकर, मानो म॑ कोई चीज सोज रहा हैं इस तरह का भाष दिखा कर, में सूर के पीछे गया ओए एकाएक उसकी कमणए पकड कर स्व जोर से उसे उठा कर पानी में फेक दिया । घह सपुद्र में गिए कर सूखी लक्कड़ो की तसट सैरने




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