चरित्रगठन | Charitra Gathan

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Charitra Gathan by श्री जनार्दन झा - Shri Janardan Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पद्ल्ला परिच्छेद । श्डं ने पाँच जार रुपयों, का. मिट्टो के .बराचर समझकर -अपनी निलेमिता, सत्यवादिता, साधुता और कर्तव्य-बुद्धि का जैसा कुछ परिचय दिया है, इच्छा करने से तुम-लोग भी अनायास, वैसे-वैसे कामों के द्वारा सुयश श्राप्त.कर सकते दवा, विश्वासपात्र.घन सकते है। और अपनी उन्नति करते हुए संसार फा भी वहुत कुछ उपकार कर सकते हो । न र र्पं मनुष्यता हूँ मनुष्य हाकर भी मनुष्यता का ज्ञान होना कठिन, है.। धन उपाजेन करके कुट्म्ब-पालन करने से अथवा अ्रधिक ,धन-सम्पत्ति का खामी होकर आमेदप्रमोद फे साथ जीवन-निर्वाह करने ही से कोई मनुष्य नहीं. फहला सकता । न झनेक शात्र पढ़कर ही फोई मलुष्य दोने का दावा कर सकता है। मनुष्य का लक्षण केवल धनवान बा विद्वान द्वोना.दी नदीीं है। यदि ऐसा ही.द्वोता वे सप्रय-समय पर कितने दी ,धन-कुबेरों का.आऔर कितने हो शास्रक्ल विद्या-विशारदों का लोग पशु कद्कर क्यों ,तिरस्कार करते .? “लिखने-पढ़ने से क्या द्वागा, उनमें मनुप्यता का बिल्कुल प्रभाव हैं 1!” इस प्रकार का वाक्य-प्रयोग ,कभो-कभी त्ोगों के मुँद्द . से सुना जाता है। इससे समर लो कि घन-सस्पत्ति और विद्या के- साध मलुष्यता का सम्बन्ध नाम्न-मात्र का है। मनुष्यता- एक और दी पदार्थ है । झात्मा के साथ इसका-घनिष्ठ सम्बन्ध है | जिन्हें प्रात्मव्ष ऐ उन्हीं का मलुध्यता:प्राप्त द्वोती, है ।. आत्मसंयम और,




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