ग्रन्थ परीक्षा भाग २ | Granth-pariksha Volume-2

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Granth-pariksha Volume-2 by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९) अध्याय है ओर उसके प्रतिज्ञा-वाक्यमें भी निमित्कथनकी प्रतिज्ञा की गई है । यथाः-- अथ चढ़यामि केपांचिनिमित्तानां प्ररुप्ण । कालज्ञानादिभेदेन यदुर्पूवेसूरिभिः ॥ १ ॥ इस तरह पर इस खंडमें निमित्ताध्यायेंकी बहुठता है । यदि दो निमित्ताध्यायोंकि होनेसे ही तीसरे खंडका नाम “ निमित्त खंड रक्‍सा गया है तो इस संढका नाम सबसे पहले “ निमित्तसंड * रखना चाहिए था; परन्तु ऐसा नहीं किया गया। इस छिए खंडोंका यह नामकरण भी समुचित प्रतीत नहीं होता । यहाँ पर पाठकोंकों यह जानकर आर मी आश्चर्य होगा कि इस संढके झुरूमें निमित्तगंथके कथनके छिए ही प्रश्न किया गया हैं और उसीकें कथनकी प्रतिज्ञा भी की गई है । यथाः--- मसुखग्राएं लघुप्रंथ॑ सपट्टे शिष्यहितावदम्‌ । सर्वश्रभापित॑ तथ्य भिमित्ते तु बवीटडि नः ॥ २-१-१४॥ भवद्धियंदद पुरे निमित्ते निनभापितमू । समासग्यासतः सर्व तीनिवोघ यथाविधि ॥ “२-२ ॥ ऐसी हाठतमें इस सेढका नाम ' ज्योतिपसंढ * कहना पूर्वापर विरोधकों सूचित करता है । खंढोंके इस नामकरणके समान चहुतसे अध्यायोंका नामकरण भी ठीक नहीं हुआ । उदाहरणके तोरपर तीसरे संढके ' फूल नामके अध्यायको लीजिए । इसमें सिंफ॑ कुछ स्वमों और ग्रहोंके फठका वर्णन है । यादि इतने परसे ही इसका नाम “ फढ़ा- ध्याय * रकक्‍्स़ा गया तो इससे पहलेके स्वमाध्यायकों और शअ्रहाचार प्रकरणके अनेक अध्यायोंकों फलाध्याय कहना चाहिए था । क्योंकि उनमें भी इसी प्रकारका विषय है । बाल्कि' उक्त फठाध्यायमें भ्रह्ाारका वर्णन है उसके सब म्ठोक पिछले -अहाचारसंबंधी अध्यायेंसि




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