ग्रन्थ परीक्षा भाग २ | Granth-pariksha Volume-2
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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अध्याय है ओर उसके प्रतिज्ञा-वाक्यमें भी निमित्कथनकी प्रतिज्ञा
की गई है । यथाः--
अथ चढ़यामि केपांचिनिमित्तानां प्ररुप्ण ।
कालज्ञानादिभेदेन यदुर्पूवेसूरिभिः ॥ १ ॥
इस तरह पर इस खंडमें निमित्ताध्यायेंकी बहुठता है । यदि दो
निमित्ताध्यायोंकि होनेसे ही तीसरे खंडका नाम “ निमित्त खंड रक्सा
गया है तो इस संढका नाम सबसे पहले “ निमित्तसंड * रखना चाहिए
था; परन्तु ऐसा नहीं किया गया। इस छिए खंडोंका यह नामकरण भी
समुचित प्रतीत नहीं होता । यहाँ पर पाठकोंकों यह जानकर आर मी
आश्चर्य होगा कि इस संढके झुरूमें निमित्तगंथके कथनके छिए ही
प्रश्न किया गया हैं और उसीकें कथनकी प्रतिज्ञा भी की गई है ।
यथाः---
मसुखग्राएं लघुप्रंथ॑ सपट्टे शिष्यहितावदम् ।
सर्वश्रभापित॑ तथ्य भिमित्ते तु बवीटडि नः ॥ २-१-१४॥
भवद्धियंदद पुरे निमित्ते निनभापितमू ।
समासग्यासतः सर्व तीनिवोघ यथाविधि ॥ “२-२ ॥
ऐसी हाठतमें इस सेढका नाम ' ज्योतिपसंढ * कहना पूर्वापर
विरोधकों सूचित करता है । खंढोंके इस नामकरणके समान चहुतसे
अध्यायोंका नामकरण भी ठीक नहीं हुआ । उदाहरणके तोरपर तीसरे
संढके ' फूल नामके अध्यायको लीजिए । इसमें सिंफ॑ कुछ स्वमों
और ग्रहोंके फठका वर्णन है । यादि इतने परसे ही इसका नाम “ फढ़ा-
ध्याय * रकक््स़ा गया तो इससे पहलेके स्वमाध्यायकों और शअ्रहाचार
प्रकरणके अनेक अध्यायोंकों फलाध्याय कहना चाहिए था । क्योंकि
उनमें भी इसी प्रकारका विषय है । बाल्कि' उक्त फठाध्यायमें
भ्रह्ाारका वर्णन है उसके सब म्ठोक पिछले -अहाचारसंबंधी अध्यायेंसि
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