भारत सावित्री [आदि पर्व से विराट पर्व तक ] | Bharat Savitri (Aadi Parv Se Virat Parv Tak)

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Bharat Savitri (Aadi Parv Se Virat Parv Tak) by वासुदेवशरण-Vasudevsharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारत-साकित्री शतसादखी दिस नारायण नमस्कृत्य नर चेव नरोत्तममु । देवीं सरस्वतीं चेद ततो जयमुदीरयेत्‌ # नारायण, नरो में श्रेप्ठ नर, तथा देवी सरस्वती को नमस्कार करके जय का आरम्भ करना चाहिए । महाभारत इस देश की राष्ट्रीय ज्ञानसहिता हैं । सदा उत्यानशील कुप्णद्वपायन वेदव्यास ने विश्याला वदरी के एकात आश्रम में वैठकर भारतीय ज्ञान-समुद्र का अपनी विक्षाल वुद्धि से मन्थन किया, जिससे महाभारत-रूपी चन्द्रमा का जन्म हुआ । जिस प्रकार समुद्र और हिमालय रत्नों की खान हैं, उसी प्रकार यह महाभारत है। जो इसमें है, वही सन्यत्र मिलेगा, जो यहा नही है, वह अन्यत्र भी नही । व्यास का वाडमय- रूपी अमत भारत राष्ट्र में व्याप्त है। वेदनिषि हपायन का यह महामारत- रूपी कम गगा की अन्तर्वेदी में विकसित हुमा सुरभित पुप्प है । ठोको को पवित्र करनेवाले इस महाकवि नें अपनी क्रातिदर्धिनी प्रतिभा से शाइ्वती वुद्धि का जो महान प्रज्ञा-स्कघ स्वापित किया, वही महामा'रत है । अनन्त वेद-वृक्ष की छाया में वैठकर व्यास ने समग्र छोक-जीवन के आरपार देखनेवालें अपने प्रातिभ चक्षु से वेद और लोक का अपूर्व समन्वय महाभारत में प्रस्तुत किया है । परम ऋषि हैपायन का यह श्रेप्ठ आख्यान विलक्षण झव्द-मडार से भरा हैँ, जिसमें आदि से अन्ततक सौ पर्व है। सूक्ष्म ने और न्याय से युक्त, वेदार्थों से अलकृत, नाना शास्त्रों से उपवृह्घित, विलज्ण रचना-कोशल से सस्कार-सपन्न, भारत के इतिहास और पुराण की ग्राह्मी सहिता का ही नाम महाभारत है, जो आयन्त धर्म से युक्त है ।




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