जामनगर के व्याख्यान | Jamnagar Ke Vyakhyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ ] [ जामनगर के व्याख्यान
होती; उस समय श्रगर हरियाली के बीजों को देखा जायें
तो उनमें वैसी विचित्रता नजर नही शाएगी । मगर पानी
बरसने पर जब नाना प्रकार की हरियाली उगती है तो
मानना ही पड़ेगा कि बीज भी नाना प्रकार के थे । बीज
त होते तो हरियाली कहां से श्राती ? श्र श्रगर बीजों में
विचित्रता न होती तो हरियाली में विचित्रता कंसे होती ?
बीज के श्रभाव मे हरियाली नही होती, पानी चाहे कितना
ही बरसे । इस प्रकार कार्य को देखकर कारण का पता
लगा लिया जाता है । हरियाली को देखकर जाना जा
सकता है कि यहा बीज मौजूद थे आर जैसे वीज थे; पानी
श्रादि का सयोग मिलने पर वेसा ही वृक्ष उगा है ।
वस, यहीं बात कर्म के सम्बन्ध में भी समभ लेना
चाहिए । यों तो कर्म के वहुत से भेद है, मगर मध्यम
रूप से श्राठ भेद किये गये हैं । जैन कमंसाहित्य बहुत विशाल
है प्रौर उसमे कम के विपय में वहुत विचार किया गया हूँ ।
इवेताम्बर-दिगम्वर श्रादि सम्प्रदायों मं झ्रनेक छोटी मोटी
बातो मे मतभेद हूं, मगर कम के ्राठ भेदो में तथा उनके
कार्य के विषय में किसी प्रकार का मतभेद नहीं है ।
इन झ्राठ कर्मों .मे चार अशुभ है ब्रौर चार युभायुभ
हैं। मगर शास्त्र का कथन हे कर्म मात्र का, फिर चाहे वह
दुभ हो या श्रशुभ, त्याग करना ही उचित हैं । ऐसा करने
पर परमात्मा का साक्षात्कार होता हैं ! यों तो आत्मा स्वयं
परमात्मा ही है । कर्म के कितने ही श्रावरण श्त्मा पर चढ़े
हो, अपने स्वरूप से वह परमात्मा ही है । थुद्ध सग्रहनय के
मत से 'एगे झाया' भ्रर्यात् झात्मा एक है, इस दूण्टिकोण के
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