अंजना | Anjana

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Anjana by चम्पालाल बांठिया - Champalal Banthiaशोभाचन्द्र भारिल्ल - Shobha Chandra Bharilla

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चम्पालाल बांठिया - Champalal Banthia

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शोभाचन्द्र भारिल्ल - Shobha Chandra Bharilla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंजन | [६ विषय गे दमामै सलाद लेते हतो ट्म শী श्रपने कर्चव्यका विचार करना चाहिये। जब राजा भी हमारे चचन की कंद्र करते हें तो हमें भी राजा की सलाह लेनी ओर माननी चाहिए । यथा तजा तथा प्रजाः यह प्क तथ्य है। परन्तु इस कटावत के साथ दूसरी कटाचन यह भी है कि यथा प्रजा तथा राजा अर्थात्‌ जसी प्रज्ञा होती & बसा ही राजा भी होता है। इससे राजा और प्रज्ञा के संवेध की घनिष्ठता का पता चलता है। राजा महेन्द्र ने उपस्थित सभाजनों से कन्या के योग्य पर की पसंदर्गी ऋरने के विपय में पएन किया। समाजनों ने प्रधान को संचयोधित करके ऋटा--आप दम सब में श्रधिक घुद्धिमानू जार अनुभवी ढें! अत- आप ही कन्या के योग्य चर बतलारए 1 प्रधान योन-पजा गवया वदा सनाद ओर बलवान भी है। अगर राजा शादना छे साथ इस कम्या का विधाह हो सके तो अपना दल “5 कई गना बढ जायगा! राधस प्रपना दामाद्‌ वनेडा नो इचका शाज्यबल नी अपने राज्य- যল হী বতি হা | গলা सॐ হ্দলে के अनुसार कन्या दा वियाह राजा राइट ই লাল জলা उचित होगा ! भधान के रस कथन दले उत्तर में ठ्खर समासखद मै किस ~+ णप पनाया বলছে শা হা दाता साचल द्ध द উজির ~




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