शालिभद्र - चरित्र | Shali Bhadra Charitra  

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shali Bhadra Charitra   by चम्पालाल बांठिया - Champalal Banthia

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about चम्पालाल बांठिया - Champalal Banthia

Add Infomation AboutChampalal Banthia

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
शालिभट्रचरित 1 | ११ ~ ~ ^~ ^^ | +~ ~~~ +^ न~ ^~ ~^ ^~ ~ ^~ ~ ~ ~ ^~ ~~~ ^ ~ प्क तो धन्ना कै कहने का ढंग ही छुछ ऐसा था; फिर वह स्त्रियाँ भी दुयाचती थीं । अतपएव धन्ना की बात सुन कर उनका हृदय पसीज उठा । उन्होंने उसे प्रेम के साथ विठला- कर कहा--सतुम भूखी होश्नोगी । दूर से आ रही हो। पहले कुछ खा-पी लो । धन्ना--्रापदयाफी मूरति है ओर श्रापके यहाँ का भोजन भी अच्छा ही होगा । मुझे भूख भी लग र्दी दै फिर भी मे आपके यहाँ का भोजन नहीं कर सकती । एक स्त्री-क्यों ? घन्ना-श्राज मैं बिना मिहनत का खा लूँगी तो मेरी जिन्दगी विगड़ जायगी | फिर मुझसे काम न होगा प्ररे सीघा भोजन सिलने की ही इच्छा करने लर्गुगी । धन्ना के इस उत्तर से नागरिक स्त्रियों को अपने कत्तेव्य का मान हुसा और इस बात से चह कांप उठीं । उन्होंने कहा--हस तुम्हें काम बताएँगी । पहले' भोजन तो कर लो | घन्ना--ऊुपा करके पहले मुझे काम बता टीजिए । आप जितनी जल्दी मुके काम बताएँगी; उतनी ही जल्दी प्रानो भोजन देंगी । स्त्रियॉ--ठुस्हारे साथ यह बालक भी तो भूखा होगा । तुम भोजन नहीं करती तो इसे करा दो । धन्ना--यह बालक भी मेरे ही जैसा है । यह मेरे उद्यम ४ ~ ~ ^




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now