जामनगर के व्याख्यान | Jamnagar Ke Vyakhyan

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Jamnagar Ke Vyakhyan by चम्पालाल बांठिया - Champalal Banthia

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ ] [ जामनगर के व्याख्यान होती; उस समय श्रगर हरियाली के बीजों को देखा जायें तो उनमें वैसी विचित्रता नजर नही शाएगी । मगर पानी बरसने पर जब नाना प्रकार की हरियाली उगती है तो मानना ही पड़ेगा कि बीज भी नाना प्रकार के थे । बीज त होते तो हरियाली कहां से श्राती ? श्र श्रगर बीजों में विचित्रता न होती तो हरियाली में विचित्रता कंसे होती ? बीज के श्रभाव मे हरियाली नही होती, पानी चाहे कितना ही बरसे । इस प्रकार कार्य को देखकर कारण का पता लगा लिया जाता है । हरियाली को देखकर जाना जा सकता है कि यहा बीज मौजूद थे आर जैसे वीज थे; पानी श्रादि का सयोग मिलने पर वेसा ही वृक्ष उगा है । वस, यहीं बात कर्म के सम्बन्ध में भी समभ लेना चाहिए । यों तो कर्म के वहुत से भेद है, मगर मध्यम रूप से श्राठ भेद किये गये हैं । जैन कमंसाहित्य बहुत विशाल है प्रौर उसमे कम के विपय में वहुत विचार किया गया हूँ । इवेताम्बर-दिगम्वर श्रादि सम्प्रदायों मं झ्रनेक छोटी मोटी बातो मे मतभेद हूं, मगर कम के ्राठ भेदो में तथा उनके कार्य के विषय में किसी प्रकार का मतभेद नहीं है । इन झ्राठ कर्मों .मे चार अशुभ है ब्रौर चार युभायुभ हैं। मगर शास्त्र का कथन हे कर्म मात्र का, फिर चाहे वह दुभ हो या श्रशुभ, त्याग करना ही उचित हैं । ऐसा करने पर परमात्मा का साक्षात्कार होता हैं ! यों तो आत्मा स्वयं परमात्मा ही है । कर्म के कितने ही श्रावरण श्त्मा पर चढ़े हो, अपने स्वरूप से वह परमात्मा ही है । थुद्ध सग्रहनय के मत से 'एगे झाया' भ्रर्यात्‌ झात्मा एक है, इस दूण्टिकोण के




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