भैरव प्रसाद गुप्त | Bherav Prasaad Gupt

Bherav Prasaad Gupt by मधुरेश - Madhuresh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपने परिवार के लिए दे कुछ अधिक नहीं कर सके-सिवाय जैसे-तैसे इलाहाबाद में एक मकान बनवा सकने के। सारे परिश्रम और समझ के बावजूद कहीं ये जमकर नौकरी नहीं कर सके क्योंकि अपनी निष्ठाओं और विचारों से समझौता करके जीवित रहने वाले व्यक्ति वे नहीं थे। इसी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए उन्होंने अपना प्रकाशनधारा प्रकाशन इलाहाबाद भी शुरू किया जहाँ से वे अपनी ही पुस्तकें छापते थे। लेकिन उनकी बिक्री और वितरण के सवाल पर वे अधिक कुछ कर सकने की स्थिति में नहीं थे। प्रकाशन का जो तंत्र पिछले कुछ दशकों में हिन्दी में विकसित हुआ सरकारी खरीद और राजनीतिक संरक्षण का तंत्र जिसमें भ्रष्ट नौकरशाही की मुख्य भूमिका है उसके कारण अब प्रकाशन में नैतिक आयग्रहों की जमीन सिकुड़ती गई है-बहुत-कुछ हमारे समय की राजनीति की तरह ही। इसीलिए अंत तक उनकी पुस्तकें दूसरे प्रकाशनों से छपती रहीं और आज उनका बेटा जय प्रकाश अपना प्रकाशन चलाने की बजाय एक दूसरे प्रकाशक के यहाँ मामूली-सी नौकरी करने को विवश है। भैरव प्रसाद गुप्त बलिया की ग्रामीण पृष्ठभूमि से आगे की पढ़ाई के विचार से इलाहाबाद आए थे। इलाहाबाद तब अपने राजनीतिक-साहित्यिक परिवेश के कारण युवा-पीढ़ी के लिए प्रेरणा और उर्जा का अक्षेय स्रोत बना था। प्रेमचंद से हुई उनकी प्रथम भेंट का उल्लेख किया जा चुका हैं। कवियों में उन पर निराला के प्रभाव की चर्चा प्रायः ही की जाती रही है। निराला का दुर्द्धर्ण संघर्ष उनकी अपनी सर्जन-यात्रा में उन्हें हमेशा प्रेरणा देता रहा। इलाहाबाद में चौथे दशक के मध्य में दी उन्होंने साहित्य और राजनीति के प्रति अपनी वह दृष्टि अर्जित की जो उनके रचना-कर्म का मूलाधार बनी । उनके व्यक्तित्व के निर्माण में बोरिस पेलबोई के असली इंसान निकोलाई आस्त्रोव्स्की के अगिदीक्षा और गोर्की के माँ का विशेष प्रभाव लक्षित किया जा सकता है। इन उपन्यासों के नायकों की भांति अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहकर समर्पण और निष्ठा की दीक्षा उन्होंने ली | भैरव एक प्रतिबद्ध लेखक थे। उनके लेखन का लक्ष्य सामाजिक रूपांतरण था । वे जीवन-भर एक वर्गहीन समाज के निर्माण को समर्पित लेखक का उदाहरण बने रहे। सामाजिक विज्ञान और दन्द्वात्मक भौतिकवादी दर्शन के अध्ययन से उन्होंने जो विश्व-दृष्टि अर्जित की थी उसने उन्हें इस सच्चाई तक पहुँचने में सहायता की थी कि यह सामाजिक विषमता ही मनुष्य के दुःख का मूल कारण है। इस वैषम्य का कारण उत्पादन के साधनों और वितरण-प्रणाली पर पूँजीपति वर्ग का एकाधिकार है। इस एकाधिकार को नष्ट किए बिना जनमुक्ति की राह जीवन-वृत्त व्यक्तित्व और रचना-समय 15




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