जैन संस्कृति और राजस्थान | Jain Sanskriti Or Rajasthan

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नरेन्द्र भानावत - Narendra Bhanawat

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शान्ता भानावत - Shanta Bhanavat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ ] [ जन सस्क्ति श्रौर राजस्थान प्रस्तुत ग थ जेनघमें-दर्शन से सम्बन्धित ताहिविफ प्रौर संद्धान्तिफ ग्र न पर्याप्त साधा में लिगे गये हट पर सामाजिक श्रीर सास्कृतिक परिप्रेक्ष्य मे जन सस्कति के प्रभावों का मूरयाकन फरने पाले ग्रथ बहुत दी कम हैं । प्रस्तुत ग्र थ इस दिशा में एक विनर प्रयास है । हमने ऊपर जेनधम श्रौर सस्कृति के मुल्याकन के जिन श्रायामों की प्रोर सकेत पिया है, उसी पृष्ठभूमि को ध्यान मे रखते हुए जैन सस्कृति श्रौर राजस्थान' नामक धस ग्रय की योजना तैयार की गई है । यह ग्रथ चार खण्डो में विभक्त है । प्रथम सण्ड “जेन सस्कृति' से सम्पन्घित है। इसमें जैन सस्कृति के मूल तत्त्वो श्रौर उसके ऐतिहासिक विकास पर श्रघिकुत विद्वानों के १६ लेप संकलित शिये गये है । द्वितीय खण्ड में “राजस्थान मे जैन सस्कृति का विकास' विपय पर हे लेस दिये गये हैं जो राजस्थान मे जेनध्मे के विभिन्न सम्प्रदायो की ऐतिहासिकता पर ग्रच्छा प्रकाश डालते है । तृतीप खण्ड ' राजस्थान का सास्कृततिक विकास श्रौर जेन धर्मातुयायी' सबसे बडा शरीर महत्त्वपूर्ण खण्ड है । इसमे ३१ लेख हैं जो ५ भागों में विभक्त है । थे भाग है--१ पुरातत्व प्रौर कला, २ भाषा श्र साहित्य, २. प्रशासन श्रौर राजनीति, ४ उद्योग श्ौर वाणिज्य, ४ धर्म श्रौर समाज । इस खण्ड के सभी लेख बडे उपयोगी श्रौर ज्ञानवद्धंक हैं । कई लेख ऐसे हैं जो पहली बार सम्बद्ध विपय पर लिखे गये हैं श्रौर शोध क्षेत्र को नई सभावनाग्रो के द्वार खोलते है । इस खण्ड शा भ्रस्तिम लेख “राजस्थान में लोकोपकारी जेन सश्थाए ” सर्वेक्षण।रमक लेख है जो धानिक प्रवुत्तियो के साभाजिक एव सास्कृतिक प्रभाव का चहूरगी चित्र प्रस्तुत करता है । चतुर्थ खण्ड 'परिचर्चा' से सम्बन्धित है । इसमे विभिन्न क्षेत्रो मे कार्यरत ९ प्रबद्ध विचारकों के 'राजस्थान के सास्कूृतिक विकास मे जैनघमें एवं सस्कृति का योगदान विषय पर विचार यु फित किये गये हैं । इस ग्र थ के प्रारम्भिक दो खण्डो की श्रघिकाश सामग्री राजस्थान जैन सस्कृति परिपदु, उदयपुर के सौजन्य से प्राप्त हुई है । इस सहयोग के लिए मैं परिपद्‌ के पदाधिकारियों, विशेषत डॉ० कमलघन्द सोगानी, श्री बलवस्तसिंह मेहता, श्री जोध सिह मेहता ग्रादि के प्रति श्रपना हार्दिक प्राभार व्यक्त करता हु । विद्वाद्‌ लेखकों ने भ्रत्यन्त व्यस्त रहते हुए भी जिस तत्परता श्रौर श्रपनत्व के साथ भ्रपने लेख भिजवाकर सहयोग प्रदान किया तथा सम्पादक-मण्ड्ल के सदस्यों ने जो भ्रात्मीयतापूर्ण योगदान दिया, उन सबके प्रति कुतज्ञता ज्ञापित करना मैं अपना परम कहेंब्य मानता हु | सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल के मत्री श्री चत्द्रराज सिंघवी के प्रति मैं विशेष शझ्राभार प्रकट करता हू जिनके सहयोग से श्त्प श्रचधि में इतने बडे ग्र थ के प्रकाशन की व्यवस्था सम्भव हो सकी । श्राशा है, जन सस्कृति भ्रौर राजस्थान के विकासात्मक सास्कृतिक प्रध्ययन की दिशा मे यह मथ एक महत्वपूर्ण घटक सिद्ध होगा झौर अन्य प्रदेशवासियों को भी इस हष्टिकोण से सास्कृतिक सरध्ययन-झ्रनुशीलन करने की प्रेरणा मिलेगी । सो-र२३४ ए, दयानन्द मार तिलक नगर, जयपुर-४




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